रहस्य की माया : माया का रहस्य

समझ में नहीं आता ...जीवन का अर्थ क्या है ?
मान लीजिए ...जो भी हम चाहते हैं ...वो सब कुछ मिल गया , तो हम क्या करेंगे ? फिर जो मिला है उसका उपभोग करेंगे !! और अगर जो भी हम चाहते हैं ...वह हमें न मिला तो ....? फिर जो चाहते हैं , उसे पाने की कोशिश करेंगे .
यही है " जीवन " .इस पृथ्वी पर आने के बाद हम यही तो करते हैं . कुछ लोग ऐसे हैं जो ये दोनों ही काम नहीं करते .....वे " जीवन के रहस्य " की खोज मे लग जाते हैं . पता नहीं जान भी पाते है या नहीं .
एक बड़ी फूहड़ घटना यहाँ याद आती है , एक मेले में बड़ा सा पंडाल लगा था जो चारो तरफ से इस तरह ढका था कि उसके अंदर झांक पाना संभव नहीं था .उस पंडाल के गेट पर एक आदमी खड़ा जोर जोर से आवाज लगा रहा था ..."देखिये ! देखिये !! संसार का महानतम आश्चर्य ...टिकट सिर्फ दस रूपए ." शर्त केवल यह थी कि एक आदमी ही अंदर जा सकता था , जब वह लौटता तभी दूसरा जाता .अंदर से लौट कर जो भी बाहर आता ....उसकी शक्ल से लगता उसे किसी ने दस जूते मारे हों . पूछने पर कुछ बताता नहीं था .इस तरह से कुछ ही देर में बीसियों लोगों ने अंदर जा कर उक्त आश्चर्य देखा और बाहर आए .
अंत में जो लोग अंदर गए थे उनमें से एक व्यक्ति नें बताया कि अंदर कुछ था ही नहीं केवल एक मोटा आदमी अंदर कुर्सी पर बैठा था . जो भी अंदर जाता उसके सामने वह अपनी लुंगी उठा कर अपना " विशाल अंडकोष " दिखा देता .बेचारा दर्शक बाहर आकर कुछ बता ही नहीं पाता ....कि लोग उस पर हँसेंगे कि दस रूपए खर्च कर उसने क्या देखा !!!
मान लीजिये " जीवन का रहस्य " आप जान ही गए ...तो इतना कष्ट उठा कर पाए गए उस रहस्य का आप क्या करेंगे ?
कल ही एक साधुवेश धारी एक सज्जन मेरे घर आए .कहते थे ....रिटायर्ड बैंक मैनेजर हैं और अब किसी कम्पनी में ...नेटवर्किंग करते हैं . चालीस हजार पेंशन पाते हैं और पंद्रह हजार कमीशन .सारा दिन नेटवर्क बनाने के फेर में दौड़ते रहते हैं .अब इस काम के लिए साधु का वेश धरने का क्या कारण है ?
अब रहस्य पता लगे या न लगे ....नेटवर्किंग तो करनी ही पड़ेगी .राम मिले या न मिले ...माया मिलनी चाहिए . क्योंकि माया के बगैर राम ....किसी काम के नहीं !!!


Comments

Anil. K. Singh said…
माया और राम दोनों मिले तो उत्तम है। दोनों न मिले तो राम ही मिल जाये।