कौन है जिम्मेदार (भाग -1)
(प्रस्तुत कथानक एक सत्य घटना है ..और मैं इसका गवाह !! किसी भी व्यक्ति की भावनाओं का निरादर करना मेरा उद्देश्य नहीं है )
" शरद " ...केमिकल इंजीनियरिंग का छात्र था .उसके पिता ,एक सरकारी दफ्तर में तृतीय श्रेणी कर्मचारी थे
माता ..गृहणी .एक भाई किराने की दुकान चलाते थे और सबसे बड़े भाई सरकारी नौकरी में थे .." शरद "
घर में सबसे छोटा लड़का था .अभी और ...चार बहनें
जिनमें तीन का विवाह हो चूका था और सबसे छोटी " अलका " ...सबसे छोटी ,सबको प्यारी ,सबसे दुलारी और सबसे सुन्दर थी .
कुल मिला कर ये ..कि परिवार सुखी था और संयुक्त था .घर में बने मंदिर में सुबह शाम आरती होती थी और माहौल आध्यत्मिक था .पिताजी .." भगवान " के भक्त लेकिन बहुत सख्त .विशेष व्रत पर्वों पर तो कार्यालय में छुट्टी न होने पर भी अवकाश लेकर दिन भर और कई बार कई कई दिनों तक जप तप और पूजा उपासना में लीन रहते थे .यह तो था " शरद " का " आदर्श परिवार " .
मैं उसका लंगोटिया मित्र था और मेरा उसके घर लगभग प्रतिदिन का आनाजाना था .मुझे वहाँ जो प्रेम और सम्मान मिलता था उसके कारण उसका
परिवार मुझे अपने परिवार सा लगता था .कोई ऐसा दिन नहीं था ..जब मैं और " शरद " न मिलते हों .वह मेरी आहट पहचानता था .बिना कहे मेरे मन की बात समझ जाता था .
और समय नें करवट बदली ....मैं मेडिकल की पढाई के लिए अलग शहर में स्थानांतरित हुआ और अपने मित्र से ऐसा बिछड़ा कि फिर कभी मुलाकात न हुई .आज तो मेरे प्रिय मित्र की केवल " यादें " ही मेरे साथ रह गईं हैं ...........
समय का चक्र चलता रहा और एक दिन ....
...........................................................
मैं अपने क्लीनिक में बैठा था ,तभी एक लगभग साठ साल के बुजुर्ग आए .समय ऐसा था कि मैं खाली था .स्वभाव से बातूनी वे महाशय मेरे बारे में जिज्ञासु थे .इसी बीच बातचीत में मैंने उनका परिचय पूछा तो उनके निवास स्थान के बारे में जान कर मुझे " शरद "
की याद आई .बहुत दिन बीत गए थे ...उन दिनों मोबाइल फोन का चलन बस शुरू ही हुआ था .चिठ्ठी पत्री ही एक माध्यम था और मैं अपने " मायाजाल " में उलझा मित्र वित्र सबको भूल चूका था .
और ..जिज्ञासावश मैंने उनसे " शरद " के पिता का नाम लेकर उनके और उनके परिवार के विषय में पूछा ........तो जो कहानी उन्होंने सुनाई , उसे सुनकर मेरे ' रोंगटे ' खड़े हो गए और मैं किंकर्तव्यविमूढ़
उनका मुँह देखने लगा .कहानी कुछ यों है कि ..
क्रमशः जारी ....
" शरद " ...केमिकल इंजीनियरिंग का छात्र था .उसके पिता ,एक सरकारी दफ्तर में तृतीय श्रेणी कर्मचारी थे
माता ..गृहणी .एक भाई किराने की दुकान चलाते थे और सबसे बड़े भाई सरकारी नौकरी में थे .." शरद "
घर में सबसे छोटा लड़का था .अभी और ...चार बहनें
जिनमें तीन का विवाह हो चूका था और सबसे छोटी " अलका " ...सबसे छोटी ,सबको प्यारी ,सबसे दुलारी और सबसे सुन्दर थी .
कुल मिला कर ये ..कि परिवार सुखी था और संयुक्त था .घर में बने मंदिर में सुबह शाम आरती होती थी और माहौल आध्यत्मिक था .पिताजी .." भगवान " के भक्त लेकिन बहुत सख्त .विशेष व्रत पर्वों पर तो कार्यालय में छुट्टी न होने पर भी अवकाश लेकर दिन भर और कई बार कई कई दिनों तक जप तप और पूजा उपासना में लीन रहते थे .यह तो था " शरद " का " आदर्श परिवार " .
मैं उसका लंगोटिया मित्र था और मेरा उसके घर लगभग प्रतिदिन का आनाजाना था .मुझे वहाँ जो प्रेम और सम्मान मिलता था उसके कारण उसका
परिवार मुझे अपने परिवार सा लगता था .कोई ऐसा दिन नहीं था ..जब मैं और " शरद " न मिलते हों .वह मेरी आहट पहचानता था .बिना कहे मेरे मन की बात समझ जाता था .
और समय नें करवट बदली ....मैं मेडिकल की पढाई के लिए अलग शहर में स्थानांतरित हुआ और अपने मित्र से ऐसा बिछड़ा कि फिर कभी मुलाकात न हुई .आज तो मेरे प्रिय मित्र की केवल " यादें " ही मेरे साथ रह गईं हैं ...........
समय का चक्र चलता रहा और एक दिन ....
...........................................................
मैं अपने क्लीनिक में बैठा था ,तभी एक लगभग साठ साल के बुजुर्ग आए .समय ऐसा था कि मैं खाली था .स्वभाव से बातूनी वे महाशय मेरे बारे में जिज्ञासु थे .इसी बीच बातचीत में मैंने उनका परिचय पूछा तो उनके निवास स्थान के बारे में जान कर मुझे " शरद "
की याद आई .बहुत दिन बीत गए थे ...उन दिनों मोबाइल फोन का चलन बस शुरू ही हुआ था .चिठ्ठी पत्री ही एक माध्यम था और मैं अपने " मायाजाल " में उलझा मित्र वित्र सबको भूल चूका था .
और ..जिज्ञासावश मैंने उनसे " शरद " के पिता का नाम लेकर उनके और उनके परिवार के विषय में पूछा ........तो जो कहानी उन्होंने सुनाई , उसे सुनकर मेरे ' रोंगटे ' खड़े हो गए और मैं किंकर्तव्यविमूढ़
उनका मुँह देखने लगा .कहानी कुछ यों है कि ..
क्रमशः जारी ....
Comments
Comment last mein milega