वो बेशकीमती हीरा (अंतिम भाग )

गतांक से आगे .........
और एक दिन .....लालाजी के शहर का कोई व्यक्ति मंदिर में आया .परंपरा अनुसार मंदिर में पूजा अर्चना करने के पश्चात वह पीठाधीश्वर महन्त जी का दर्शन
करने पहुँचा .और महन्त जी से मिलने के बाद उसने उन्हें पहचान लिया कि ये तो वही ' लाला रामरतन जौहरी ' हैं ,जो दस साल पहले लापता हो गए थे .
वहाँ तो वह व्यक्ति कुछ नहीं बोला लेकिन वापस अपने शहर लौट कर उसने लालाजी का वृत्तांत  नमक मिर्च लगा कर इस तरह प्रचारित किया कि लालाजी के वैभव की कहानी उनके तीनों पुत्रों और पत्नी के कान तक जा पहुँची .
लाला जी की गैरमौजूदगी और व्यापार की अनुभवहीनता नें उनके परिवार को कंगाल बना 
दिया था .जो पत्नी रात में भी कीमती साड़ी और गहने पहिन कर सोती थी ,आज बड़ी दयनीय हालत में साधारण सी साड़ी पहनती थी .लाला रामरतन जौहरी घर से क्या गए .......अपना सारा वैभव भी साथ लेकर चले गए .
अपने तीनों सुपुत्रों के साथ 'ललाइन 'नें मंत्रणा की - ' क्या हुआ जो हमनें उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया .आखिर हैं तो वे हमारे पिता ही - चल कर पाँव पकड़ लेंगे .....माफ़ी माँग लेंगे 

....यहाँ भीख माँगने से तो अच्छा है ...पिता जी से क्षमा याचना की जाय ..हो सकता है वे हमें माफ़ कर ही दें .' इस प्रकार मंत्रणा कर वे लोग 

' लाला जी के मंदिर ' में जा पहुंचे .
लालाजी नें इन चारो को देखते ही मुँह फेर लिया 
कुछ बोले ही नहीं .फिर भी वे माँ बेटे वहीं धर्मशाला में रहने लगे .
कहते हैं बात से बात निकलती है .और रहस्य अधिक दिनों तक छिप नहीं सकता और ललाइन तो चाहती ही थीं कि लोग उनका परिचय जानें .
धीरे धीरे मंदिर प्रशासन को भी पता चल गया कि ...ये देवी जी तो श्री महन्त जी की धर्मपत्नी हैं और ये तीनों उनके सुपुत्र .
लालाजी उर्फ़ महामण्डलेश्वर जी को यात्राओं और स्वागत समारोहों से ही अवकाश नहीं था .सैकड़ों 
लोग रोज़ आते जाते थे ,उनका ध्यान इस और गया ही नहीं कि अन्दर क्या खिचड़ी पक रही है .
तीनों पुत्रों की जब मंदिर में प्रतिष्ठा होने लगी और उन्हें विशेष आदर सम्मान प्राप्त होने लगा तो आदत से मजबूर उन तीनों नें फिर गल्ला उर्फ़ दानपात्र से पैसे चुराने शुरू कर दिए और चढ़ावे में हिस्सा माँगने लगे .जब बात लालाजी उर्फ़ महामंडलेश्वर जी के सामने आई तो उन्होंने बुलाकर पूछा ....और फिर झांय झांय झांय ....
बात बढ़ती गई और अपनी ललाइन के सामने लाला उर्फ़ महामण्डलेश्वर जी तीनों पुत्रों के हाथों और लातों से फिर पिट गए .ललाइन फिर खड़ी तमाशा देखती रहीं .

लाला रामरतन जौहरी उर्फ़ गद्दीनशीन श्री महंत ....महामंडलेश्वर फलां फलां फलां ...

....केवल एक लँगोटी में अपने गुरुदेव के चरणों में नतमस्तक थे और आँखों में आँसू भरकर कह रहे थे 
.........गुरुदेव !!मैं "हीरा " फेंक आया .....

 ***समाप्त ***

Comments

Anil. K. Singh said…
लाला जी काफी पिटने के बाद मंजिल तक पहुंचे। बहुत अच्छा