उस पत्र में क्या लिखा था ? (समापन भाग )

 गतांक से आगे ....
पंडितजी को कुछ समझ में तो नहीं आया लेकिन वे इतना अवश्य समझ गए कि उन्हें आज कुछ विशेष मिलेगा ...और उनके कष्ट समाप्त हो जायेंगे .
अपना पोथी पत्रा समेट कर पंडित जी ,महामंत्री के साथ दरबार में पहुंचे ...तो पूरा दरबार ..सम्राट सहित उनके स्वागत में खड़ा हो गया .स्वयंसम्राट 
अपने आसन से उठ कर पंडित जी के पास आए और आदर सहित उन्हें ले जा कर अपने राज सिंहासन पर बैठाया .अब तक पंडित जी को केवल यही समझ आया कि एक राजा उनका अतिशय सम्मान कर रहा है और वे आभार प्रकट करती दृष्टि से राजा को देखते हुए ...सिंहासन पर बैठ गए .
इतने में दरबार में उपस्थित पंडितों ने स्वस्तिवाचन प्रारंभ किया और राजगुरु ...पंडित जी के सामने आए ....और जैसे ही उन्होंने रत्नजड़ित स्वर्ण मुकुट पंडित के सिर पर रखा और तिलक करने चले कि अपने सिर से मुकुट उतार ...पंडितजी खड़े हो गए और सम्राट से बोले ....' महाराज ! आप ये क्या कर रहे हैं ? '
हाथ जोड़ कर सम्राट नें अतिविनीत भाव से कहा ....' महाराज !आज से आप हमारे राजा हैं और हम सभी आप के सेवक .' 
पंडित जी हतप्रभ रह गए और बोले ... महाराज !
आपकी आज्ञा शिरोधार्य है ,परन्तु मुझे कुछ समय दीजिए ...अभी मुझे कहीं जाना है .मैं लौट कर आपका प्रस्ताव स्वीकार करूंगा .......
और बिना सम्राट का उत्तर सुने ....पंडित जी अपना पोथीपत्रा उठा कर ....दरबार से बाहर चले गए ....
गुरु गोरखनाथ के चरणों पर अपना सिर रखे पंडित ..आंसुओं से उनके चरण धो रहे थे .जब उन्होंने सिर उठाया तो ...महायोगी बोले .." क्या हुआ पंडित कुछ मिला नहीं ?" 
पंडित जी बोले ...' गुरुदेव !मिला तो इतना !!!जिसकी मैंने कभी कल्पना भी न की थी .केवल एक प्रश्न पूछने मैं आपके पास आया हूँ ...' 
पूछो ?
गुरुदेव ! कृपा कर बतायें ..उस पत्र में ऐसा क्या लिखा था जिसे पढ़ कर एक चक्रवर्ती सम्राट अपना राजपाट मुझ अकिंचन ब्राह्मण को देने के लिए तैयार हो गया ...?
योगिराज गंभीर स्वर में बोले ...मैंने उस पत्र में केवल इतना लिखा था  कि " जिसको प्राप्त करने की तुम इच्छा रखते हो ...उसे प्राप्त करने का समय आ गया है .तुम अपना राज्य इस ब्राह्मण को प्रदान कर मेरे पास आ जाओ ."
पंडितजी बोले ...तो क्या गुरुदेव वह वस्तु इतनी मूल्यवान है कि उसे पाने के लिए एक राजा अपना राज्य छोड़ने को भी तैयार हो गए ..?
योगिराज बोले ....हाँ !!वह संसार की सबसे दुर्लभ वस्तु है और जिसे पा लेने पर कुछ भी पाना शेष नहीं रहता .
पंडितजी बोले ...और वह वस्तु आपके पास है  ?
हाँ है ...योगिराज बोले .
पंडित जी बोले ...तो क्या मैं भी उसे प्राप्त कर सकता हूँ ?
हाँ ..कर सकते हो .
पंडितजी दोनों हाँथो की अंजलि बना कर बोले .
.....तो मुझे इस मायाजाल में नहीं फंसना ..आप मुझे वही दे दीजिए .......
और कालांतर में वे पंडित एक प्रख्यात योगी हुए .


Comments

Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छी कहानी है। लेकिन पहली बार सामने लाने के लिए आपको धन्यवाद।