मेरी साहित्यिक यात्रा :कामायनी से कठोपनिषद तक

 धीरे धीरे समय बीत रहा था और मैं स्नातक होने की तरफ अग्रसर हुआ .मुझे न जाने क्यों दुनियादारी से चिढ़ होने लगी थी .मैं एकांत प्रिय तो पहले से था .अब और अधिक हो गया था .इसी बीच मेरे न चाहते हुए भी मेरा विवाह गांव की एक बड़े जमींदार खानदान की बेटी से लगभग जबरदस्ती हो गया .जो भी हुआ उसे भगवान की इच्छा समझ मैंने स्वीकार कर लिया क्योकि अब विरोध का कोई औचित्य नहीं रह गया था .
 फिर समय ने ऐसी करवट बदली कि अपने अधूरे अरमानों के साथ और गंभीर पारिवारिक कारणों से फिर गांव वापस आना पड़ा .मैं ज्यादा विस्तार में नहीं जाना चाहता .केवल इतना कहूंगा कि गाँव वापस लौटने पर मुझे मेरे बाबूजी नहीं मिले .पापा मर गए और घर की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई .और मेरी लिखी कविताएँ ,कहानियाँ आदि सब न जाने कहाँ बिना प्रकाशित हुए ही गायब हो गईं 
पत्नी मेरी बहुत अच्छी सहयोगी साबित हुईं लेकिन वे तो ग्रामीण जीवन में रची बसी थी .इस कारण उन पर तो कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा .लेकिन मैं इस गंभीर वातावरण परिवर्तन को झेल नहीं सका और गंभीर अवसाद में चला गया .बड़ी 
मुश्किल से मैं उस कठिन दौर से बाहर निकला .
और अध्यात्म की ओर अग्रसर हुआ .फिर इस आध्यत्मिकता का मुझ पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि मैंने वेद ,उपनिषद ,पुराण ,गीता और बाइबिल तक भी बड़ी गंभीरता से पढ़े .

 इस बीच मुझे स्वविकास की पुस्तकें और कई विदेशी लेखकों की अनूदित पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला .ऐसे विभिन्न प्रकार के साहित्यों ने मुझे एक अनोखी
विचारधारा प्रदान की और मेरे अंदर एक ऐसी कॉकटेल ,एक ऐसा ब्लेन्ड तैयार हुआ जिसे स्वयं ही पीकर मैं स्वयं ही मस्त और प्रमुदित हो जाता हूँ .कभी कभी अपनी पीठ स्वयं थपथपा लेता हूँ .
इस प्रकार के गंभीर अध्ययन में मैंने इतनी किताबें पढ़ी जितनी पूरे स्कूल कॉलेज की पढाई के दौरान भी
नहीं पढ़ी .आज भी मेरे पास बहुत सी किताबों का संग्रह है ,जो कई बार रद्दी में बिकने से बची हैं .अब इस ऑनलाइन ज़माने में किताबों की कद्र कम हो गई है .
जिंदगी के खट्टे मीठे अनुभवों से गुजरता हुआ मैं ,अभिव्यक्ति की चाह में मैं " ब्लॉगर " बना और अब इसी ब्लॉग के माध्यम से अपनी रचनाए आप तक पहुंचाने का " एक प्रयास " कर रहा हूँ .
सकारात्मक सोचें !!खुश रहें !!!

Comments

Anil. K. Singh said…
जी बिल्कुल हम सकारात्मक सोचें गे और खुश रहे गे।