ससुरारि पियारि लगी जब ते !!! (भाग - 1 )

बात तीस साल पहले की है ....भइया राममिलन इण्टरकॉलेज टॉप किए .वे आगे पढ़ने इलाहाबाद जाना चाहते थे ..लेकिन उनके बप्पा बड़े खिलाफ़ थे .
आखिरकार घर से झगड़ा करके ,राम मिलन बिना कुछ लिए इलाहाबाद चले ही गए .
पता नहीं कैसे इलाहाबाद में उन्होंने अपने शुरुआती
दिन बिताए थे ...बाद में पता चला कि उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी .ए .किया फिर एम.ए.
किया .उस समय अँग्रेजी विषय से एम .ए .का बड़ा महत्व था .वहाँ उन्होंने स्कूली बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया फिर वहीं एक विद्यालय में शिक्षक हो गए .किशोरावस्था में ही विवाह हो गया था .पत्नी लगभग  अनपढ़ थीं और राममिलन जी घर वालों के विरोध के बावजूद उन्हें लेकर अपने साथ इलाहाबाद चले आए .
कालान्तर में दो बच्चे भी हो गए .और राममिलन भइया युनिवर्सिटी में लेक्चरर हो गए .
एक दिन अचानक ..पता नहीं क्यों उनकी नौकरी छूट गई .उन्होंने कोर्ट में मुकदमा कर दिया लेकिन तारीख पर तारीख पड़ती गई .....अकेले थे तो ट्युशन से गुजारा हो जाता था ..लेकिन अब दो बच्चे और पत्नी के साथ किराए के कमरे में रह कर गुजारा करना मुश्किल होने लगा था .अंततः वे सपरिवार अपने गाँव वापस आए .
घर पर पहले तो कुछ दिन उनका और उनके परिवार का बड़ा सम्मान हुआ लेकिन जब सबको पता चला कि ' महाशय ' की नौकरी छूट गई है और वे बेरोजगार होकर घर आए हैं ...तो धीरे धीरे लोगों की निग़ाह बदलने लगी ....और घर की औरतों नें उनकी पत्नी को ऐसे ऐसे ताने देने शुरू किए कि बेचारी ग्लानि
और आत्मसम्मान आहत होने से वो बीमार रहने लगी
भाई लोग बटवारे की बात करने लगे और बप्पा भी सब की हाँ में हाँ मिलाने लगे .बच्चे जो वहाँ कान्वेंट में पढ़ते थे ....गांव में स्थापित नहीं हो पा रहे थे .बड़ा बच्चा कुछ समझदार था ,वो सारा दिन एकांत में बैठा आसमान ताका करता और छोटा वाला सारा दिन गांव के बच्चों के साथ गुल्ली डंडा खेलता रहता ...
राममिलन पत्नी की दवा कैसे कराते ?कैसे मुकदमा देखते ?स्थिति बड़ी विकट थी ......
एक दिन राममिलन भइया अपनी ससुराल पहुंचे और वहाँ उनकी बड़ी आवभगत हुई ..शादी के बाद ,बहुत दिन बाद जो गए थे .सास ससुर को उन्होंने कभी देखा नहीं ..वे बहुत पहले ही गुजर चुके थे .इकलौती बहिन की शादी उसके बड़े भाई ने ही की थी .
ससुराल में अपनी सलहज के सामने वे बड़ी असहज स्थिति में बैठे थे ..ख़ुद पलँग पर बैठे थे ,
जिस पर नई चद्दर बिछी थी और तकिया रखा था 
और उनकी सलहज एक मोढ़े पर बैठी ..पंखा झलते हुए ..हाँथ नचा नचा कर और हँस हँस कर हालचाल पूछ रही थी .तभी उनके साले जी कंधे पर हल रखे और बैलों की जोड़ी हांकते पहुंचे .उनको देख कर मुस्कुराए और कंधे पर रखे गमछे से मुँह पोंछ कर बैलों को खोलने लगे .
उनकी सलहज नें उन्हें दूध का गिलास पकड़ाते हुए कहा ...' पी जाओ ..नन्दोई !हम गए और आए .उन्होंने चुपचाप गिलास पकड़ लिया ..लाल 
लाल दूध से सोंधी महक उठ रही थी उस पर मोटी मलाई जमा थी ..पीतल के उस आधा किलो के दूध से भरे गिलास को दोनों हांथों से पकड़ वे उसे सुड़क सुड़क कर पीने लगे .
उनकी सलहज लगभग दौड़ते हुए बाहर आई और मूँज से बनी मउनी में गुड़ रख कर ..कुएँ से पानी खींचने लगी .भारी लोटे में पानी और पीतल की गगरी में पानी रख कर वह लौटी और आकर फिर उसी मोढ़े पर बैठ गई और पंखा झलने लगी .
साले जी ..बैल बांध कर लौटे और गगरी से पानी निकाल कर हाँथ ,पैर ,मुँह धोया .गुड़ की डली मुँह में डाली ..गटागट भर लोटा पानी पिया और लम्बी साँस खीच कर एक अंगड़ाई लेते हुए और गमछा झटकते हुए आकर उनकी चारपाई पर बैठ गए और बड़े प्यार से उनका हाँथ अपने हाँथ में लेते हुए ...बातचीत और हँसी मजाक करने लगे .
रात में साले बहनोई लकड़ी के पीढ़े पर बैठ कर एक साथ भोजन कर रहे थे .और साले जी उनको बड़े ध्यान से देख रहे थे ..राममिलन भइया भोजन कर उठे और हाँथ धोकर चारपाई पर लेट गए .गर्मी का दिन ..पुरवाई चल रही थी ...आसमान में तारे छिटके थे और वे लेटे लेटे झींगुरों की आवाज सुनते हुए सूनी आँखों से तारे देख रहे थे .
इधर उनके साले और सलहज आपस में बातें करने लगे ..साले जी ने पत्नी से कहा ..' लागत है पाहुन परेशान हैं .कुछू बात है जरूर जो वै बतावत नहीं हैं !!' पत्नी नें उनका समर्थन करते हुए हामी भरी और कहा ..' वै नाहीं बतावत तो तुम ही पूछ लेव ." ...हाँ ,ठीक है ..आज हमार बिस्तर उनके बगलै मा लगी ...साले जी बोले .
.................
और रात में साले नें ..राममिलन से खोद खोद कर पूछना शुरू किया और राममिलन अपनी अपनी सारी रामकहानी सुना गए और सहानुभूति पाकर 
द्रवित होकर ..अपने मन का गुब्बारा फोड़ कर रोने लगे .उनको रोता देख कर साले जी भी रोने लगे ..उन दोनों की सम्मिलित सिसकियाँ सुन कर सलहज दौड़ी आई और बच्चों की तरह दोनों को रोता देख ..घबरा गई .......
सारी बातें जान कर उसका पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया ...और क्रोध में रोते हुए उसने पति की बगल में बैठ कर अपने से पंद्रह साल छोटे ननदोई को सीने से लगा लिया और बोली ...
.." पाहून !एतना परावा समझ लिहो हमें ..अब बताय रहे हो !अरे !..हमार ननद हमरी बिटिया है .
सात साल की रही ..जब हम ओकर भौजी बने .बिटिया की नई पालापोसा .अब जउन हम कहब ओका तुहे करे का परी ....."
 फिर ...........
क्रमशः जारी ........

Comments

Anil. K. Singh said…
अच्छा है लेकिन पूरा मजा तो पूरा पढ़ने पर आये गा। देखते हैं सरहज क्या करती हैं।
Saras Pandey said…
Bahut hi badhiya hai
Saras Pandey said…
अवधि मात्रृ भाषा में रचित ये कृति बहुत ही सुंदर है
Saras Pandey said…
कहनी बहुत मन भावन लगी , अगले खण्ड की अभिलाषा है
Bablie said…
Aapne to premchand ji ki yaad dila di