वो बेशकीमती हीरा (भाग - दो )

गतांक से आगे ......
आँखों में वीरान उदासी समेटे लाला रामरतन जौहरी रात के एक बजे , एक हाँथ में छोटा सा बैग लिए रेलवे प्लेटफार्म पर बैठे पिछले चार घंटे में घटी घटनाओं को मन ही मन देख रहे थे .उनका रोने का मन कर रहा था .जिन बच्चों के लिए जाने किन किन मंदिरो की चौखट चूमी .जिनके छींक देने पर घर में डॉक्टरों की लाइन लग जाती थी .और जिनके सुख में कोई बाधा न पड़े इसके लिए एक छोटी दुकान से विशाल शो रूम तक का कठिनाई भरा सफर तै किया .उन्होंने आज ये क्या किया ? और ललाइन !!उसका ख्याल आते ही लाला का मन नफरत से भर गया और उन्हें , उसके वे ऐब अब बड़े असह्य जान पड़ने लगे जिन्हे आज तक वे सिर्फ प्रेम की खातिर सहन करते रहे .अब और नहीं .आत्मसम्मान से बढ़ कर कुछ नहीं होता .मन में दृढ निश्चय कर लालाजी सामने खड़ी ट्रेन में सवार हो गए ..............................
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कौन सी ट्रेन थी ? कहाँ जा रही थी ?इसका लालाजी को कोई होश नहीं था .तभी टी .टी .ई .आया ,पूरे डिब्बे में घूम आया फिर लालाजी के बगल में बैठ कर बोला ...टिकट बाउ जी !! लालाजी नें चौंक कर देखा और नहीं में सिर हिला दिया .लालाजी का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था .शक्ल से ही दौलतमंद लगते थे और कपड़े भी ठीक ठाक पहने थे .पता नहीं क्या सोच कर टी.टी.चला गया .
एक रात बीती , पूरा दिन बीता ,फिर एक रात और ..
...चौथे दिन गाड़ी ऋषिकेश पहुँची .अंतिम स्टेशन था .गाड़ी को आगे जाना नहीं था .पूरा डिब्बा खाली हो गया .लालाजी गाड़ी से नहीं उतरे .आखिर कब तक बैठे रहते उतरना तो था ही .अपना बैग उठाए लड़खड़ाते कदमों से वे स्टेशन से बाहर निकले .उन्हें अहसास हुआ कि चार दिनों से कुछ खाया नहीं है .वे एक टी स्टॉल पर पहुंचे और ताजी चाय बनाने को कहा .पर्यटक स्थल था उनके जैसे तमाम लोग आते जाते थे .ऐसे स्थान पर स्थानीय रिक्शेवालों से लेकर चाय वाले तक सभी टूरिस्ट एजेंट बन जाते हैं .चायवाले ने लालाजी को जाँचा परखा और अपने हिसाब से अच्छी से अच्छी चाय बनाकर लाला जी के सामने रख दी .लाला चाय पी कर ऐसे तृप्त हुए मानो अमृत पी लिया हो .बिना पूछे चाय वाले नें उन्हें बिस्कुट और नमकीन दिया ...और लाला ने खा लिया .चायवाला बड़े प्यार से बोला ...बाऊजी ! होटल चाहिए .नहीं ....टका सा जवाब देकर लाला नें उसे पैसे दिए .और जिधर उनका मुँह था उसी दिशा में चल दिए .
 चलते चलते 'गंगा के किनारे ' पहुंचे .गंगाजी यहीं से मैदान में प्रवेश करती थीं .प्रवाह बहुत तेज था और उसकी आवाज बड़ी दूर तक सुनाई देती थी .लालाजी एकांत पा कर वहीं बैठ गए और रोने लगे .बड़ी देर तक रोने के बाद वे उठे और एक धर्मशाला में पहुंचे .
वहाँ नहा धो कर भोजन किया और सो गए .

सुबह आँख खुली तो सब कुछ "शून्य " जैसा लगा .अब एक दृढ़ निश्चय का भाव उनके चेहरे पर साफ साफ परिलक्षित होने लगा था .लालाजी नित्यक्रियाओं से निवृत्त होकर ,स्वल्पाहार ग्रहण कर अपना छोटा सा बैग लिए एक दिशा को चल पड़े .चलते गए चलते गए सामने पहाड़ी रास्ता दिखा उसी पर आगे बढ़ते गए .उनके कदम थक कर चूर हो गए थे .वे चार घंटे से लगातार चल रहे थे .वे एक चट्टी पर पहुँचे और वहाँ बैठ कर चाय पीने लगे .
तभी लालजी की नजर सामने पगडण्डी पर पड़ी ....
........और फिर .......
.......आगे क्या हुआ ?...
क्रमशः जारी ...



Comments

Anil. K. Singh said…
लाला जी अभी तक सही सलामत है। आगे क्या होता है