कौन है जिम्मेदार ? (भाग - 2 )
अब तक आपने पढ़ा .......
बहुत दिन हो गए थे ,मैं अपने मित्र " शरद " से नहीं मिला था .एक दिन मेरी मुलाकात एक बुजुर्ग से हुई , जो " शरद " के परिवार से अच्छी तरह परिचित थे .और उन्होंने जो कहानी सुनाई !!!...
.....अब आगे ....
" शरद " इंजीनियर बन चुका था और उस दिन ...किसी कंपनी मैं नौकरी का इंटरव्यू देने घर से निकला और चौराहे पर पहुँचते ही , ट्रक के नीचे आ गया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए ..परिवार में हाहाकार मच गया ,जिस पुत्र से परिवार को सबसे अधिक आशा थी ...वह दुनिया से कूच कर गया .
" उसके " क्रियाकर्म के लिए ' परिवार ' अपने पैतृक निवास स्थान को चला गया और पंद्रह दिन बाद लौटा
घर की खुशियाँ बिखर चुकी थी .दुःख की घड़ी में सांत्वना देने वालों का ताँता लग गया ....लेकिन यह दुःख तो ऐसा होता है जिसका इलाज सिर्फ ' समय '
के हाथ में होता है .
इसी दौरान " शरद " के एक मित्र " तौसीफ़ " का घर में आना जाना बढ़ गया .इस " तौसीफ़ " को मैं अच्छी तरह जानता था क्योंकि मैं कई बार " शरद " के साथ उसके घर जा चुका था लेकिन
न जाने क्यों वो मुझे फूटी आँख नहीं सुहाता था .
और उसके प्रति अपनी भावना मैं कई बार ' शरद ' से जाहिर भी कर चुका था .लेकिन वह मुझे हमेशा व्यावहारिक बनने की सलाह देता रहता था ." शरद " के न रहने पर परिवार दुःख मे डूबा था और उन्हें इस बात की खबर नहीं थी कि कौन आया ...कौन गया ?
और इस बीच परिवार की सबसे लाडली बेटी
" अलका " से " तौसीफ़ " की नजदीकियां बढ़ने लगीं .और किसी को कानोंकान ख़बर न हुई .
तीन महीने बाद एक दिन .....
" अलका " घर से लापता हो गई .ऐसी खबरें छुपती कहाँ हैं और अंततः तीन दिन के अंदर
" शरद " के पिता को पता चल गया कि उनकी
लाडली बिटिया !! ..." तौसीफ़ " के साथ भाग गई और इस समय " तौसीफ़ " के घर पर है .
एक कट्टर ब्राह्मण परिवार की बेटी एक मुसलमान लड़के के साथ भाग जाय ...!!..यह बात उनसे बर्दास्त न हुई ......
फिर भी वे लोकलाज के भय से और दुनियादारी के नाते वे अपने बड़े पुत्र जो एक सरकारी नौकर थे ...
के साथ " तौसीफ़ " के घर पहुँचे .
" तौसीफ़" के घर वालों नें इन दोनों का स्वागत किया और आदर सम्मान !!! के साथ बैठाया .चूंकि घटना चर्चा का विषय बन चुकी थी ,सो
उस मुस्लिम बाहुल्य मोहल्ले के अन्य पड़ोसी भी इकट्ठा हो गए ...." तौसीफ़ " के " अब्बा " ने कहा ..' पंडित जी ! आपकी बेटी अपनी मर्जी से यहाँ आई है .अगर वो यहाँ से जाना चाहे तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं है ..आप उसे ले जाइए .
और फिर वो " लाडली बिटिया " अपने बाप और भाई के सामने पेश हुई ...और उसनें भरे समाज में अपने !! बाप और भाई के साथ जाने से ' इंकार ' कर दिया .
पंडित जी का हृदय फट गया और वे अपने बेटे के साथ लड़खड़ाते कदमों से भरी महफ़िल में रुसवा होकर ...घर लौटे .आज उनके " भगवान " ने उनकी उनकी सारी जिन्दगी की तपस्या का कैसा फल दिया था ?
पंडित जी ...जवान बेटे की मौत तो बर्दास्त कर गए लेकिन " बेटी " की इस हरकत ने उन्हें जीते जी मार डाला .वे निढाल पड़े थे .
क्रमशः जारी ....
बहुत दिन हो गए थे ,मैं अपने मित्र " शरद " से नहीं मिला था .एक दिन मेरी मुलाकात एक बुजुर्ग से हुई , जो " शरद " के परिवार से अच्छी तरह परिचित थे .और उन्होंने जो कहानी सुनाई !!!...
.....अब आगे ....
" शरद " इंजीनियर बन चुका था और उस दिन ...किसी कंपनी मैं नौकरी का इंटरव्यू देने घर से निकला और चौराहे पर पहुँचते ही , ट्रक के नीचे आ गया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए ..परिवार में हाहाकार मच गया ,जिस पुत्र से परिवार को सबसे अधिक आशा थी ...वह दुनिया से कूच कर गया .
" उसके " क्रियाकर्म के लिए ' परिवार ' अपने पैतृक निवास स्थान को चला गया और पंद्रह दिन बाद लौटा
घर की खुशियाँ बिखर चुकी थी .दुःख की घड़ी में सांत्वना देने वालों का ताँता लग गया ....लेकिन यह दुःख तो ऐसा होता है जिसका इलाज सिर्फ ' समय '
के हाथ में होता है .
इसी दौरान " शरद " के एक मित्र " तौसीफ़ " का घर में आना जाना बढ़ गया .इस " तौसीफ़ " को मैं अच्छी तरह जानता था क्योंकि मैं कई बार " शरद " के साथ उसके घर जा चुका था लेकिन
न जाने क्यों वो मुझे फूटी आँख नहीं सुहाता था .
और उसके प्रति अपनी भावना मैं कई बार ' शरद ' से जाहिर भी कर चुका था .लेकिन वह मुझे हमेशा व्यावहारिक बनने की सलाह देता रहता था ." शरद " के न रहने पर परिवार दुःख मे डूबा था और उन्हें इस बात की खबर नहीं थी कि कौन आया ...कौन गया ?
और इस बीच परिवार की सबसे लाडली बेटी
" अलका " से " तौसीफ़ " की नजदीकियां बढ़ने लगीं .और किसी को कानोंकान ख़बर न हुई .
तीन महीने बाद एक दिन .....
" अलका " घर से लापता हो गई .ऐसी खबरें छुपती कहाँ हैं और अंततः तीन दिन के अंदर
" शरद " के पिता को पता चल गया कि उनकी
लाडली बिटिया !! ..." तौसीफ़ " के साथ भाग गई और इस समय " तौसीफ़ " के घर पर है .
एक कट्टर ब्राह्मण परिवार की बेटी एक मुसलमान लड़के के साथ भाग जाय ...!!..यह बात उनसे बर्दास्त न हुई ......
फिर भी वे लोकलाज के भय से और दुनियादारी के नाते वे अपने बड़े पुत्र जो एक सरकारी नौकर थे ...
के साथ " तौसीफ़ " के घर पहुँचे .
" तौसीफ़" के घर वालों नें इन दोनों का स्वागत किया और आदर सम्मान !!! के साथ बैठाया .चूंकि घटना चर्चा का विषय बन चुकी थी ,सो
उस मुस्लिम बाहुल्य मोहल्ले के अन्य पड़ोसी भी इकट्ठा हो गए ...." तौसीफ़ " के " अब्बा " ने कहा ..' पंडित जी ! आपकी बेटी अपनी मर्जी से यहाँ आई है .अगर वो यहाँ से जाना चाहे तो हमें कोई ऐतराज़ नहीं है ..आप उसे ले जाइए .
और फिर वो " लाडली बिटिया " अपने बाप और भाई के सामने पेश हुई ...और उसनें भरे समाज में अपने !! बाप और भाई के साथ जाने से ' इंकार ' कर दिया .
पंडित जी का हृदय फट गया और वे अपने बेटे के साथ लड़खड़ाते कदमों से भरी महफ़िल में रुसवा होकर ...घर लौटे .आज उनके " भगवान " ने उनकी उनकी सारी जिन्दगी की तपस्या का कैसा फल दिया था ?
पंडित जी ...जवान बेटे की मौत तो बर्दास्त कर गए लेकिन " बेटी " की इस हरकत ने उन्हें जीते जी मार डाला .वे निढाल पड़े थे .
और तभी घर में भूचाल आ गया ....!!!!!आगे क्या हुआ ? ......पढ़िए कल अंतिम किश्त में .....
क्रमशः जारी ....
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