भाग्य का खेल (समापन किश्त )

गतांक से आगे ...........उसने खटिया के नीचे से बैग निकाल कर बाहर रखा और झपट कर दरवाजा बंद कर कुंडी चढ़ा दी .फिर वापस लौट कर बैग के पास आया और उसे खोल कर सारे नोट निकाल कर बिस्तर पर करीने से लगाए और अनुमान लगाने लगा .......कितना पैसा होगा ये ? कभी नोटों की गड्डी हाँथ में लेकर फड़फड़ाता ...कभी उसे सूंघता और चिंता में डूबता उतराता बड़ी देर तक बैठा रहा .जबसे यह पैसा उसकी जिंदगी में आया था उसका सुख चैन हराम हो गया था .सबसे बड़ा सवाल तो यह था कि ये पैसा हजम कैसे हो ?
उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि इतना पैसा पाकर वो खुश हो या दुःखी .अंततः उसने नोटों को फिर से बैग में करीने से रखा और अपने टूटे हुए टीन के बक्से का ताला खोल कर उसमे रखे सारे कपड़े बाहर निकाल कर ' वह बैग ' उसमें रख कर ताला लगा दिया .और कपड़े तह कर बिस्तर के सिरहाने रख दिया .
कमरे से बाहर निकल कर उसनें अपनी जेब टटोली उसमें एक एक हजार के पाँच नोट थे .कुछ चाय पानी पी कर वह नदी के किनारे जा कर बैठ गया .कभी बैठ जाता ..कभी खड़ा हो जाता ...कभी बेचैनी से टहलने लगता .तभी उसने देखा एक स्त्री पास के पीपल के पेड़ पर जल चढ़ा रही थी .वहीं बगल में एक छोटा हनुमान जी का मंदिर बना था .बचपन से ही वह अपने पिता के मुँह से सुनता आया था ....भगवान पर भरोसा रखो ,वे सबकी मदद करते हैं !......जाने क्या सोच कर वह मंदिर के सामने पहुँचा और हाँथ जोड़ कर बैठ गया .मन का गुबार फूटा और वह रोने लगा ..
...हिचकी बंध गई और वो निढाल हो गया .वापस कमरे में आकर बिस्तर पर गिर पड़ा और इतनी गहरी नींद सोया कि शाम को ही आँख खुली .
वह बिस्तर पर लेटा हुआ उस बक्से को देख रहा था ..
..जिसमें इतना धन था कि वह गिन नहीं पाया था ..!
अचानक उसके दिमाग की बत्ती जली ..................
और उसे छह महीने पहले घटी एक घटना याद आ गई .उसे याद आई कि कॉलेज की फीस न भर पाने के कारण उसे नोटिस मिला था .घर से मिले फीस के पैसे वह उड़ा चुका था .कहीं और नहीं ...अपने दोस्तों की देखा देखी एक कम्प्यूटर क्लास ज्वाइन की और कोर्स की फीस भरने में पैसे खत्म हो गए .उसी कोर्स के दौरान उसकी मुलाकात एक अमीर घर के लड़के से हुई और दोस्ती हो गई .वह लड़का उम्र में उससे बड़ा था और कहता था कि अपना खर्च वह खुद निकालता है .कैसे ?शेयर बाजार में पैसा लगा कर .
वह स्प्रिंग की तरह उछला और सीधा अपने दोस्त के घर पहुँचा .दोनों मित्र एक दूसरे से मिलकर खुश हुए .हाल चाल हुआ और मित्र ने पूछा ..और क्या चल रहा है ? अपने आप को नियंत्रित करता हुआ वो बोला ......भाई जी ! बाबूजी ने कुछ जमीन बेची थी .मुझे पचीस हजार देकर बोले हैं ...चाहे पढ़ो चाहे कोई काम करो और कमाओ .तुमने शेयर मार्केट के बारे में बताया था ...सोचता हूं कुछ पैसे लगा दूँ .  मित्र ने कहा ....' भाई रिस्क है .लेकिन तुम कहते हो तो मैं तुम्हारी सहायता जरूर करूंगा .फलां जगह ब्रोकर का ऑफिस है ,कल सबेरे दस बजे मिलो .'
दस बजे वो ब्रोकर के ऑफिस पहुँचा और मित्र की मदद और ब्रोकर की जमानत पर उसका शेयर मार्केट खाता खुला ...एक प्राइवेट बैंक में .
दूसरे दिन वह बैंक गया और पचीस हजार जमा कर दिए .किसी ने कोई सवाल नहीं किया .फिर मित्र से मिला और बोला कि दस हजार तो जमा कर दिया अब बाकी पैसे कहाँ रखू .पास में रहे तो खर्च हो जायेंगे ....मित्र ने अपने बैंक में उसका खाता खुलवा दिया और अगले दिन उसने उस खाते में पचीस हजार जमा कर दिए .फिर हर तीसरे दिन इस खाते से उस खाते में और उस खाते से इस खाते में पैसा निकालता और जमा करता रहा .
तीन दिन बाद कालेज का इलेक्शन था और उसके रूममेट आने लगे .वह चिंतित हुआ .अभी तो एक साथी आया कल और सब आ जायेंगे फिर ....
वह सीधा बैंक गया और लॉकर की डिमांड की .और लॉकर मिल गया क्योकि बैंक एक अच्छा ग्राहक खोना नहीं चाहता था .और उसने नोटों से भरा वह बैग लॉकर में रख दिया .
फिर सब कुछ भूल कर उसने ग्रेजुएशन पूरा किया और अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन न करते हुए दो साल तक कई खातों में पैसा इधर उधर करता रहा .बैंक खुश ..ब्रोकर खुश ..वह भी खुश .
अंततः वो मुंबई गया और दो साल तक वहीं टिका रहा और फिर पैसा खर्च होना शुरू हुआ .किसी को शंका न हुई .किसी ने कोई सवाल नहीं किया .लड़का कमाने लगा था !!!........पैसा अच्छी तरह हजम हो रहा था .
यह है भाग्य का खेल ...पैसा किसका था ? किसके लिए था ?.......कुछ नहीं पता .

Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी अच्छी है। अगली का इन्तजार। है।
Anil. K. Singh said…
कहानी अच्छी है। अगली का इन्तजार। है।
Saras Pandey said…
Kahani Bahut achchhi lgi