वो बेशकीमती हीरा (भाग -3 )





 गतांक से आगे -
-तभी लाला जी की नजर सामने पगडंडी पर पड़ी और पता नहीं किस अन्तःप्रेरणा से वे उधर ही चल पड़े .वह पगडंडी एक गुफा के मुहाने पर जाकर खत्म हो गई .लालाजी गुफा के अंदर गए तो सामने एक पत्थर की शिला पर एक भव्य ,ओजस्वी पुरुष आँख बंद किए ध्यान में डूबे थे .लालाजी चुपचाप जाकर उनके सामने बैठ गए ............
बड़ी देर बाद उन दिव्य पुरुष नें नेत्र खोले और सामने लालाजी को बैठे देखा .वे मुस्कुराए और बोले ...." तो तुम आ गए रामरतन लेकिन थोड़ा जल्दी आ गए .जैसी हरि इच्छा ." उनसे नजर मिलते ही लाला का बांध टूट गया और वे ,उनके चरणों में गिर कर मूर्छित हो गए .

 लालाजी की मूर्छा टूटी तो उन्होंने स्वयं को एक  "आश्रम " के कमरे में पाया .वही दिव्य पुरुष सामने बैठे थे और उनके कुछ सहयोगी एक डॉक्टर के साथ खड़े थे .अब ये ठीक हैं .........कह कर डॉक्टर चला गया .दिव्य पुरुष जिन्हे सभी 'गुरुदेव ' कहते थे सामने बैठे, लालाजी को ध्यान से देखते हुए मुस्कुराए और बोले .....रामरतन अब कैसे हो ? जी ...बिलकुल ठीक ...लालाजी बोले .ठीक है तो अब आराम करो .कल सुबह भेंट होगी ....गुरू जी बोले .
सुबह चार बजे लालाजी की आँख खुली .नित्य क्रियाओं से निपट कर बैग में रखे दूसरे जोड़ी कपड़े पहिन लालाजी कमरे से बाहर निकले .वातावरण मनमोहक सुगंध अनुपूरित था .सुगंध यज्ञशाला से आ रही थी .लालाजी यज्ञशाला पहुंचे ,हवन कार्य संपन्न कर ,गुरुदेव के दर्शन करने पहुंचे .गुरूजी मानों इन्ही की प्रतीक्षा कर रहे थे .गुरूजी नें उन्हें प्रेम से अपने पास बैठाया और सिर पर हाँथ फेरते हुए बोले .....
...'अब क्या इरादा है ?' जी यहीं आपके चरणों में पड़ा रहना चाहता हूं ....लाला जी बोले . ठीक है जैसी तेरी इच्छा .जैसी हरि इच्छा .......गुरू जी बोले .
लालाजी का मानो पुनर्जन्म हो गया .अब वे मस्त रहने लगे .साधना करने लगे और .....साल भर बीत गए .और अब तो लालाजी प्रवचन भी करने लगे .लेकिन वे अब भी बहुत उद्विग्न रहते थे और उन्हें रात में नींद नहीं आती थी .
और एक दिन .......
गंगा के किनारे गुरुदेव का शिविर लगा था .लालाजी गुरुदेव के प्रिय शिष्यों में शामिल हो चुके थे .तीन दिन के शिविर में लालाजी नें वह सब कुछ किया जो गुरुदेव नें आज्ञा दी .
लेकिन इन तीन दिनों में गुरुदेव की पारखी निगाहों नें उस जौहरी की अन्तर्दशा को समझ लिया .और शिविर के अंतिम दिन सुबह सुबह लालाजी को जगाया और अपने पीछे आने का इशारा किया .जब लाला उठे तो कहा कि अपना सामान साथ लेकर आ .लाला हैरान होकर अपना एकमात्र बैग लेकर गुरुदेव के पीछे चल पड़े .

गुरु जी अपनी कुटिया में पहुँचे और लाला को अपना बैग खोलने को कहा .लाला नें अपना बैग खोला तो उसमें से एक सुन्दर डिब्बा निकला .गुरूजी ने कहा ..
..इसे भी खोल .उसमें से एक और सुन्दर डिब्बा निकला .और अंत में एक बड़ा बेशकीमती हीरा निकला .

गुरुदेव की आँखे क्रोध से लाल हो गईं और उनको समझ में आ गया कि इस जौहरी की बेचैनी का कारण यही "हीरा "है .
गुरुदेव तेज स्वर में बोले ......इसे साथ लेकर क्यों घूम रहा है ?
लालाजी रुआँसे होकर बोले ....घर छोड़ते समय यही सोच कर इसे साथ ले आया कि कहीं जरूरत पड़ी तो ......
अच्छा !!तो जरूरत पड़ी क्या ?.....गुरू जी बोले 
नहीं .....लाला बोले .
" या तो इसे अभी ले जा कर गंगा में फेंक दे ......या घर लौट जा ." ....अब जा यहाँ से !ऐसा कह कर गुरुदेव उठे और लम्बे डग भरते हुए अपनी कुटी के अंदर चले गए .
अब लाला रामरतन जौहरी क्या करेंगे ?
क्या वे बेशकीमती हीरा फेंक देंगे ?
या घर लौट जायेंगे .............
क्रमशः जारी 

Comments

Anil. K. Singh said…
हीरे का मोह दिल से कहां निकलता है
Anil. K. Singh said…
हीरे का मोह दिल से कहां निकलता है