मनोरंजन (अध्याय -2)

 गतांक से आगे ....
....एक समय था जब स्मार्ट फोन और टी .वी . नहीं थे .अरे ! स्मार्ट फोन तो अभी आया और 
बुद्धू बक्सा यानी टी .वी .भी भारत में सन ..1980
के बाद लोकप्रिय होना शुरू हुआ .उसके पहले कौन सा मनोरंजन का साधन था .
मैं जब छोटा था तब पढता था ...भारत की 80% आबादी गांव में रहती है .आज भी सत्तर प्रतिशत 
आबादी गाँव में ही रहती है यद्यपि पलायन तेजी से बढ़ रहा है .मनोरंजन एक प्राकृतिक भूख है .कहानियाँ ....वर्षों से नहीं सदियों से मनोरंजन का प्रमुख साधन रहीं हैं ..ईशप की कथाएँ ..जातक कथाएँ ...बेताल पचीसी ...किस्सा तोता मैना ..पंचतंत्र ...आदि आदि .माँ की लोरियाँ ..पता नहीं कौन म्यूजिक कम्पोजर था ? उनका .
..जिसे सुन कर बच्चा सो जाता था और माँ पता नहीं कौन सी संगीत शिक्षा लेकर सुनाती थी .सुबह आंख खुलती तो आटा पीसने की घर्र घर्र और धान कूटने की धमक की आवाजों के साथ मिला समवेत स्वरों का " तितिरा " सुन कर .
वह भी एक मनोरंजन था जिसे सुन कर आजकल का डी जे , शर्मा  जाए .


 सावन के महीने में झूला झूलते हुए गाया जाने वाला " सावन गीत " और उनका कर्णप्रिय स्वर जाने किस संगीत विद्यालय मेँ सिखाया जाता था .फ्री ऑफ़ कास्ट मनोरंजन ,विदाउट एनी टैक्स .
बैसाख महीने की ' बैशाखी ' और फागुन की ' होली ' जिसे सुनकर बूढ़ा भी जवान हो जाय .ढोलक की धमकती थाप पर कैसा भी डिप्रेसन हो हवा हो जाय .
खेत जोतते किसान का पंचम सुर में गाया ' बिरहा ' ...और ' चैती ' ..अब क्या बताऊँ .जाने कहाँ चले गए
समय बदला ...रेडियो और सिनेमा आए .पहले शहरों और फिर गावों में इनका प्रभाव बढ़ने लगा .और फिर सुबह के ' तितिरा ' के स्वर कहीं गुम हो गए और आवाज आने लगी ...ये आकाशवाणी है ,अब आप देवकीनंदन पांडेय से समाचार सुनिये ...और ये बी बी सी लंदन की हिंदी सेवा है ...और ये विविध भारती है .
....आदि आदि .अब लोगों के मनोरंजन का स्तर बदलने लगा था और फिल्मी गानों नें ,लोकसंगीत को और फिल्मों नें नाच नौटंकी को काफी पीछे छोड़ दिया था .सत्तर के दशक के फिल्मी गीत तो इतने लोकप्रिय हुए कि उन्होंने लता मंगेशकर ,मुकेश ,मोहम्मद रफ़ी ,
मन्ना डे जैसे गायकों को अमर बना दिया .लता जी तो
एक जीवित किंवदंती बन गईं और उनके बाद फिल्मीगानों में जो शून्य पैदा होगा , पता नहीं कोई कालजयी गायक उसे भर भी पायेगा या नहीं .तमाम भारतीय फिल्मों नें मनोरंजन के ऐसे कालजयी मानक स्थापित किए जो शायद ही कभी बदल सकें .
उस समय हम थियेटर में फ़िल्म देखने जाया करते थे और वो भी पूरे परिवार के साथ .फिल्में हिट होतीं तो टिकट ब्लैक में बिकते .फिल्मों में भी एक मानमर्यादा का स्तर बना रहता था .फिर भी नायक नायिका का प्रेम दृश्य आते ही लोग बगले झांकने लगते थे .



फिर आया टेलीविजन का दौर ...घर में बजता रेडियो चुप होने लगा और सिनेमा हॉल धीरे धीरे बंद होने लगे .अस्सी के दशक में आया ब्लैक एंड वाइट टी वी और दूरदर्शन का एकमात्र चैनल ....नीम अँधेरे कमरे में भरे पड़ोसी और टी .वी .वाले घर का गर्व से चौड़ा सीना देखने लायक होता था .
फिर भारत में एशियाई खेलों का आयोजन हुआ और इसी के साथ आया रंगीन टी वी का दौर और आए ..हम लोग ,बुनियाद ,रामायण और महाभारत जैसे कालजयी धारावाहिक जिनकी लोकप्रियता नें टी वी को घर घर में पहुंचा दिया .
रविवार को सुबह नौ बजे ..रामायण धारावाहिक ,टेलीविजन की आरती ,सूनी सड़कें और टी वी के सामने लोगों की भीड़ ....मनोरंजन का अभूतपूर्व रूप परिवर्तन देखने लायक था .
पूरा परिवार एक साथ टी वी देखता था .इनमें पड़ोसी भी शामिल रहते थे ,चाय पानी का दौर भी चालू रहता था .टी वी झिलमिलाया तो डंडा लेकर छत पर चढ़ जाते और एंटीना घुमाते फिर ....आया ..नहीं आया ..
हाँ आ गया ..नहीं चला गया ...बस बस आ गया .
और जब टी वी पर कोई प्रेम दृश्य आता तो नजरें चुराते कमरे से बाहर चले जाते .
धीरे धीरे मनोरंजन के नये नये मापदंड स्थापित होते चले गए और अब तो सैकड़ो टी वी चैनल्स के बावजूद उनका स्तर कैसा नीचे गिरा है ...सोचने वाली बात है .
और अब ....तथाकथित सूचना क्रांति या इनफार्मेशन टेक्नोलोजी के दौर में ...पत्नी फेसबुक पर ,बेटी ट्विटर पर ,बेटा व्हाट्स ऐप पर लाइक्स खोजते व्यस्त हैं .क्या देख रहे हैं ?क्यों देख रहे हैं ?.....और किसे देख रहे हैं ?...कुछ पता नहीं .बच्चे जो एक दिन टी वी रिचार्ज खत्म होने पर हंगामा खड़ा कर देते थे ..अब डाटा रिचार्ज करवाने की जिद करते हैं .
अब तो इस तकनीकी मनोरंजन नें ...मनोरंजन के नाम पर ऐसा माहौल बना दिया है कि व्यक्ति नितांत अकेला हो गया ...भरे पूरे परिवार के बावजूद .
तमाम नए प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग पैदा हो गए और इनसे निपटने के लिए अलग प्रकार के विशेषज्ञ चिकित्सक भी पैदा हो गए .
मेरा उद्देश्य ..प्राचीन और अर्वाचीन मनोरंजन का विश्लेषण मात्र है ,उनकी आलोचना नहीं .सबकी अपनी खूबियां और खामियां हैं .अति हर चीज की बुरी होती है .जरूरत है इनके विवेक सम्मत उपयोग की .
अंत में इतना ही कहूंगा कि ....पानी पीने के लिए होता है ..डूब कर मरने के लिए नहीं .

Comments

Anil. K. Singh said…
आप ने मेरे मुंह की बात छीन लिया है। ये बातें दिमाग में हमेशा चलती रहती हैं। हमारा बहुत कुछ हमसे दूर हो गया है।
Anil. K. Singh said…
आप ने मेरे मुंह की बात छीन लिया है। ये बातें दिमाग में हमेशा चलती रहती हैं। हमारा बहुत कुछ हमसे दूर हो गया है।