मेरी साहित्यिक यात्रा : कॉमिक्स से कामायनी तक

 मित्रों ! बचपन से किशोरावस्था तक पहुँचते पहुँचते मेरी तमाम रुचियाँ बदलती चली गईं .अब मैं कुछ गंभीर किस्म के साहित्य की तरफ आकर्षित होने लगा था .मनोरंजन की दुनिया तेजी से बदलते हुए रेडियो से निकल कर टेलीविजन की ओर आकर्षित हो रही थी .मेरे घर पर रेडियो का स्थान ब्लैक एंड व्हाइट टी वी ले चूका था .
 वैचारिक रूप से मैं संगीत और साहित्य में विशेष रूचि रखता था लेकिन पिताजी का और स्कूल का दबाव विज्ञान और गणित की ओर था .जब कि गणित मुझे बिलकुल पसंद नहीं था .मुझे शास्त्रीय संगीत सुनने का बहुत शौक था जब कि मेरे परिवेश में किसी को भी यह संगीत लगता नहीं था .स्कूल के संगीत समारोहों और नाटकों में मैं बढ़ चढ़ कर भाग लेता था जो साल में दो बार आयोजित होते थे और इनका मंचन शहर के एक भव्य सभागार लाजपत भवन में किया जाता था .
इस प्रकार बड़े आनंद और उत्साह से दिन बीत रहे थे .मैं अपने पिताजी से इतना डरता था कि कभी किसी मामले में मैं उनसे बात तक नहीं कर पाता था .लेकिन उन्हें मेरी रुचियों का ज्ञान तो था ही .और जो पहला उपन्यास मैंने पढ़ा वह था बाबू भगवती चरण वर्मा रचित " चित्रलेखा " .मजे की बात ये कि यह उपन्यास मुझे पापा जी नें खरीद कर दिया .इसके बाद तो ऐतिहासिक उपन्यासों की श्रंखला ही शुरू हो गई .जिनमें जयशंकर प्रसाद और मनु शर्मा प्रमुख थे .मुंशी प्रेमचंद के लगभग सभी उपन्यास मैंने पढ़े .
एक प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री गुरुदत्त की रचनाएँ खूब पढ़ी उनमें बहती रेत और गिरते महल मुझे आज भी याद हैं .
 उम्र बढ़ती गई और मैंने एक दिन प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक का एक उपन्यास पढ़ा और कालांतर में उनकी जो भी रचना मेरे सामने आई मैंने पढ़ी .इस क्रम में मैंने गुलशन नंदा को भी पढ़ा .ज्ञातव्य हो ये सब मैं तभी पढता था .जब मुझे और कुछ पढ़ने को नहीं मिलता था और पढ़ने की प्यास जोर से लगी होती थी .
 सस्ते साहित्य में मेरी रूचि न के बराबर थी .इस तरह
साहित्यिक मन के साथ मैंने विज्ञान की पढाई जारी रखी .पिता जी की साहित्यिक रूचि केवल उपन्यासों और पत्र पत्रिकाओं तक ही सीमित थी .मुझे गंभीर साहित्य पढता देख वे नाराज़ होते थे .वे चाहते थे मैं विज्ञान और गणित पढूं .
आज मेरे बच्चे मेरे इतने शरीफ़ नहीं हैं और न ही मैं अपने पिता की तरह एकांगी .
यहाँ तक मैं अपने जीवन से बहुत खुश था .लेकिन इसके बाद जिंदगी ने जो मोड़ लिया उसने मेरी सारी खुशियाँ छीन लीं

Comments

Saras Pandey said…
kahani wastavik h,Aage ki kahani padhne ke liye mnn bahut utsuk hh