वो बेशकीमती हीरा (भाग एक )

(इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनायें पूरी तरह काल्पनिक हैं )
प्रसिद्ध जौहरी लाला रामरतन जी अपनी दुकान पर बैठे थे .मस्तक पर सफेद टीका ,कुर्ता धोती और काठियावाड़ी पगड़ी में पचास वर्षीय उनका व्यक्तित्व बड़ा मनमोहक था .बोलते तो लगता मुँह से फूल झड़ रहे हों .चश्में के पीछे झांकती उनकी चमकीली आँखे किसी अनमोल हीरे की परख कर रहीं थीं .बाएं हाँथ में हीरा और दाएं हाँथ में आवर्धक लेंस लिए वे बड़ी तन्मयता से उस हीरे का निरीक्षण कर रहे थे .घंटों इसी प्रकार बैठे रहने पर अंततः मुंशी जी के आगमन पर उनका ध्यान भंग हुआ .
' लाला जी ! अब मैं यहाँ और काम नहीं कर सकता .' ..मुंशी जी बोले .
क्यों ?...चौंक कर लालाजी बोले .
' मैं जब बीस साल का था ,तब से आपकी दुकान पर काम कर रहा हूँ .आप के तीनों लड़के मेरे सामने पैदा हुए और जवान हुए .मेरे लिए वे तीनों अपने ही बच्चों के सामान हैं .अभी तक मैं उनकी हरकतों को आप से छिपाता रहा लेकिन अब मेरी आत्मा मुझे कचोटती है .अब आप मुझे मुक्त कर दीजिये'  .....मुंशी जी दुःखी होकर बोले .
आखिर हुआ क्या ?....लालाजी बोले .
आपके लड़के आये दिन दुकान पर आते हैं ,बैठते हैं ,कुछ करते धरते नहीं और बिना मुझसे पूछे गल्ले से पैसा निकाल कर ले जाते हैं .मैं कब तक आपसे छिपाता रहूँ ? अब तक नहीं बताया क्योंकि मैं आप जैसे देव पुरुष को दुःखी करना नहीं चाहता था .' ....
....मुंशी जी बोले .
अच्छा !तो अब क्यों बता रहे हो ?....ठीक है ..मैं देखता हूँ .और हाँ जयपुर वाली पार्टी का माल तैयार है उसे समय से भिजवा देना .....लाला जी बोले .
ठीक है लालाजी ....कह कर मुंशी जी चले गए .
अपनी आलीशान दुकान का शटर गिरा कर और मोटे मोटे कई ताले जड़वा कर लालाजी शान से अपनी कार में बैठ कर अपने शानदार बँगले पर पहुँचे ललाइन जो घर में भी कीमती रेशमी साड़ी पहने थीं और नख से शिख तक गहनों से लदीफदी थीं ..सामने सोफे पर बैठी थीं .लालाजी लम्बी साँस खींच कर ललाइन के सामने बैठ गए .
नौकरानी चाय पानी लेकर आई और लालाजी के सामने रख दिया .
सुनो गौरी ! तुम्हारे बच्चे की तबियत अब कैसी है ?..
...लाला जी बोले .
ठीक है लालाजी , लेकिन अभी कमजोरी बहुत है .
....नौकरानी बोली .
ऐसा करो तुम आज घर चली जाओ .बच्चा बहुत छोटा है .उसे तुम्हारी जरूरत है ....लाला बोले .
तभी ललाइन झल्ला कर बोलीं ...और घर का काम ?
लाला बोले ...तुम कर लो .और कपड़े बदल कर स्टडी में चले गए .
ललाइन बड़बड़ाती रहीं और लालाजी कान में रुई डाले अपना काम करते रहे .
रात दस बजे ...लालाजी के तीनों सुपुत्र घर आए और आते ही न जाने किस बात पर झगड़ने लगे .उस समय लाला भोजन कर रहे थे . भोजन अधूरा छोड़ कर और हाँथ मुँह धो कर ललाइन से बोले ......यह क्या तमाशा चल रहा है घर में ?
ललाइन गुस्से में हाँथ नचा कर बोलीं .....तुम तो चुप ही रहो जी ! तुम्हें घर से क्या मतलब ? नौकरानी को कह दिया चली जाओ और मेरा हाल तुमको नहीं दिखता .
लालाजी ने अपना सिर पकड़ लिया और लड़कों से बोले .....चुप करो तुम लोग क्या हो गया ?......
लालाजी को गुस्से में देख कर लड़के कुछ सहम गए .
फिर लालाजी ने उनसे पूछा .....तुम लोग मुंशी जी से बिना पूछे और बिना मुझे बताए गल्ले से पैसा क्यों निकाल लेते हो ? और फिर ........झाय झाय झाय
बात बढ़ती गई और अचानक छोटे लड़के नें लालाजी को थप्पड़ जड़ दिया .लालाजी हकबका कर उसे देखने लगे .अभी वे कुछ बोलते कि पता नहीं ललाइन नें कुछ इशारा किया या जाने क्या हुआ ......तीनों लड़कों नें लालाजी की जम कर धुनाई कर दी .और ललाइन तमाशा देखती रहीं .
आगे क्या हुआ ...............?
क्रमशः जारी .......




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