ससुरारि पियारि भई जब ते (समापन भाग )

गतांक से आगे ....
.......राममिलन भइया अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर ससुराल पहुँचे .सलहज नें उनकी पत्नी की हालत देखी और लिपट कर रोने लगी और रोते रोते ...भगवान से लेकर ससुराल वालों तक ..
..यहाँ तक कि राममिलन को भी खरी खोटी सुना गई .आखिरकार राममिलन अपनी पत्नी और बच्चों को ससुराल छोड़ कर ...अपने साले के दिए ...दो हजार रूपए ..जो उस समय बड़ी रक़म मानी जाती थी ...को लेकर " बम्बई " (आज की मुंबई ) चले गए .
अब राममिलन जी निश्चिन्त थे क्योंकि उन का परिवार प्रेम और सुरक्षा के वातावरण में था .
एम .ए .(अँग्रेजी )वो भी गोल्ड मेडलिस्ट ...राममिलन जी को जल्दी ही एक बहुत बड़ी दुकान में अच्छी तनख्वाह की नौकरी मिल गई .और पढ़ने पढ़ाने के शौक़ीन राममिलन जी नें लोगों के घर जा कर ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया .
दिन बीतते गए और पाँच साल बाद राममिलन एक सफल और मशहूर अंग्रेजी अध्यापक हुए .
उन्होंने नौकरी छोड़ कर केवल अँग्रेजी पढ़ाना शुरू कर दिया था .उनके छात्रों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही थी और राममिलन जी अब अपनी शर्तों पर पढ़ाने लगे थे .उनका अपना दो कमरे का फ्लैट था और वो सब कुछ था जो एक मध्यम वर्गीय परिवार को चाहिए ." बम्बई " 
में दो कमरे का फ्लैट होना ..उस समय भी बड़ी बात थी .
और एक दिन राममिलन ससुराल पहुंचे .बच्चे थोड़ा बड़े हो गए थे और स्थानीय स्कूल में पढ़ रहे थे ,बच्चों और पत्नी के मुख पर उत्तम स्वास्थ्य की लालिमा साफ दिखाई दे रही थी .
उन्होंने अपने साले को देखते ही लपक कर गले लगाया और अपनी सलहज के सामने घुटनों पर बैठ कर उनके पैरों पर अपना सिर रख दिया .और वो घबरा कर पीछे हट गई .वे बोले ..." आप मेरी माँ के समान हो ,मैं आपका अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगा ." इतना सुनना था कि कि सलहज नें उन्हें झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया और रोते हुए घर के अंदर भाग गई .राममिलन अपने साले जी का मुँह देखने लगे और साले साहब भी उनको आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए घर के अंदर चले गए .
अपना गाल सहलाते ...राममिलन को कुछ समझ में नहीं आया .तभी उनकी पत्नी आ गईं और बोली .....' आप को भउजी से ऐसा नहीं बोलना था ' ...क्यों क्या बात हो गई ?मैंने क्या किया ?...
...राममिलन जी बोले .
पत्नी बोलीं ...' भइया भौजी ...हमरे अम्मा बप्पा हैं .वे कौनो अहसान नहीं किए .आप अहसान बोले तो भउजी को बहुत बुरा लगा .वै दूनों हम लोगन का आपन बच्चा समझत हैं .जाओ मनाओ हमरी भौजी को .और राममिलन घर के अंदर चले गए .
दो दिन बाद राममिलन जी ढेर सारे सामान के साथ अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपने गांव आए .सबका मुँह फूला देख और इतने दिनों बाद भी व्यवहार में कोई परिवर्तन न पाकर ...केवल पानी पिए और मात्र दो घंटे रुक कर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ ' बम्बई ' चले गए .
अब राममिलन के भाई लोग कहने लगे ...पढ़ लिख कर वो तो जोरू का गुलाम हो गया .जो ससुराली कहते हैं वही करता है .उनको ही कमा कमा कर देता है ..हमें तो पूछता ही नहीं .कलजुग है ..ठीकै कहें हैं गोसाईं बाबा ...
ससुरारि पियारि लगी जब ते !
रिपुरूप कुटुंब भए तब ते !!

Comments

Anil. K. Singh said…
आप का लेख पढ़कर बहुत कुछ सोचना पड़ रहा है। एक श्तेदार साथ में था। एक सच्चा हितैषी बहुत जरूरी होता है।
Anil. K. Singh said…
आप का लेख पढ़कर बहुत कुछ सोचना पड़ रहा है। एक श्तेदार साथ में था। एक सच्चा हितैषी बहुत जरूरी होता है।