कहानी का साइड इफ़ेक्ट

मित्रों , परसों मैंने आप को अपनी ' हर हाल में खुश रहने की कहानी ' से आप का परिचय कराया था . आप जानते होंगे कि जब भी आप किसी को अपने साथ घटी किसी घटना के विषय में बताते हैं खास तौर पर जब आप लिखते हैं तो उन बीते पलों को फिर से अपने अन्तर्मन में दोहराते हैं .
कहानी लिखने के बाद मेरे लगभग भर चुके घाव फिर से हरे हो गए . मुझे रात में योग निद्रा का अभ्यास करने के बाद भी ठीक से नींद नहीं आई . सुबह पाँच बजे मैं उठा तो मन भारी भारी सा था . मैं हाथ मुँह धो कर भारी कदमों से मॉर्निंग वॉक पर निकला .
रोज़ की तरह पुलिया पर जा कर बैठ गया . पाँच छह दिन से पानी नहीं बरसा था . नहर का पानी सूखने लगा था . मरी मछलियों की बदबू फैलने लगी थी . मुझसे वहाँ बैठा न गया . मैं सीधा गाँव के अन्दर अपने पुस्तैनी मकान पर पहुँचा जो मेरे पिताजी ने अपने रिटायरमेंट के बाद बनवाया था . उस मकान में अब ताला बंद रहता था और जिसका उपयोग सिर्फ अनाज के भण्डारण के लिए होता है . मैंने ताला खोल कर अंदर कदम रखा . आँगन में काई जमा थी . मैंने जैसे ही आगे कदम रखा , मैंने देखा सामने रखे पाँच पाँच कुन्तल के स्टील के ड्रमों में से एक के नीचे का ढक्कन खुला पड़ा था . और सारा गेहूं जमीन पर बिखरा पड़ा था .
अब मैंने अपने पड़ोसी को मदद के लिए बुलाया और फिर हम लोगों ने गेहूँ को बोरों में भर कर वापस ड्रम में डालना शुरू किया . इसी बीच मेरी नजर ड्रम के नीचे गई .काफी अनाज ड्रम के नीचे और उसके पीछे पड़ा था . मैं घुटनो पर झुक कर गेहूं बाहर निकालने लगा . तभी एक काला बिच्छू मेरी हथेलियों के ऊपर से निकल गया .मेरे प्राण काँप गए . मैं सब कुछ छोड़ आँगन में आकर खड़ा हो गया . दरवाजा खुला देख मेरा दूसरा पडोसी भी आ गया फिर उन दोनों ने मिलकर मेरा गेहूँ सुरछित किया . मैं बाहर बाहर से उनका सहयोग करता रहा .
काम समाप्त हुआ और वे दोनों चले गए . उनके जाने के बाद मैंने देखना शुरू किया कहीं कोई और नुकसान न हुआ हो . इसी बीच मुझे कुछ ऐसा दिखा कि मन दुःखी हो गया .
मैं अपने आप पर काबू न रख सका और दरवाजा बंद कर जोर जोर से रोने लगा . कब तक रोता ? आखिर आठ बजते बजते मैं घर पहुँच गया . बच्चे स्कूल जा चुके थे . घर में नीरवता छाई थी .
रुद्रवीणा पर बज रहे राग भैरवी के स्वर घर में गूँज रहे थे . पत्नी आँगन में रखे तख़्त पर गोल तकिये के सहारे आँखे बंद किये ऐसे  बैठी थी जैसे समाधिस्त हो गई हो . मेरी उसे डिस्टर्ब करने की हिम्मत नहीं हुई और मैं किचेन में जा कर चाय बनाने लगा .






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