आज मैंने भगवान को देखा लेकिन वहाँ धर्म नहीं था !!!

मित्रों , कल मेरे एक निकट सम्बन्धी की दादी माँ का जो कहते हैं कि 110 साल की थीं उनका देहांत हो गया .इतना दीर्घ जीवन ! बड़े शानदार तरीके से उनकी बिदाई हुई .
सोचता हूँ ये तो इतना लम्बा जीवन जी कर गईं और कुछ लोग असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं ,
लेकिन जीवन छोटा हो या बड़ा इसका लक्ष्य क्या है ?
एक घर बना लिया . बच्चे पैदा किए .पाला पोसा बड़ा किया .तब तक बुढ़ापा आ गया और फिर उन्ही बच्चों
पर आश्रित हो गए .अंततः अच्छी या बुरी मौत मर गए  ................
ये खाका है एक आदर्श पारिवारिक जीवन का .बहुतों का तो ये लक्ष्य भी पूरा नहीं होता .लोग जीवन भर छोटे बड़े लक्ष्यों के पीछे भागते रहते हैं लेकिन अंततः मृत्यु को आना है और वह आएगी .
समझ में नहीं आता कि जब एक दिन मर ही जाना है तो इतना सब बवाल हम क्यों मचाए हैं?
मैं स्वयं से ही यह सवाल बार बार पूछता हूँ ?लेकिन मुझे जो उत्तर मिलता है वह मैं आपको समझा नहीं सकता .लिखना तो संभव नहीं है फिर भी ' खुश रहो ' के कुछ लेखों में इस वर्णनातीत के वर्णन का प्रयास हुआ है .
कुछ इसी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए मनुष्य नें धर्म की खोज की ,कल्पनाएँ गढ़ी ,परिकल्पनाएँ गढ़ी और कहा विश्वास करो .जबरदस्ती विश्वास करो नहीं तो हम तुम्हें नास्तिक मानेंगे और तुम्हें दंड भी देंगे .
धर्म के सवाल पर बड़े बड़े देशों की सरकारें भी कांप जाती हैं .कई देशों में धर्म की ही सरकार है और कहीं सरकार ही धर्म है .
यह जान कर भी कि कुछ धार्मिक कार्य अनैतिक 
असमाजिक और दुःख देने वाले हैं ,धर्म के नाम पर बे रोकटोक जारी हैं .यदि कोई आवाज उठाता है तो कहीं ईशनिंदक कह कर फाँसी पर चढ़ा दिया जाता है ,कहीं देश से बाहर निकाल दिया जाता है ,कहीं जिन्दा जला दिया जाता है और कहीं गोली मार दी जाती है .
कुल मिलाकर इस ' धर्म ' के विषय में सब कुछ देखते सुनते हुए भी हमनें नहीं देखा .हमनें नहीं सुना और हमने नहीं कहा की अवधारणा आत्मशात करनी पड़ती है .
मैं यहाँ धर्म का विरोध नहीं कर रहा मैं तो केवल इतना कहना चाहता हूँ कि इस तथाकथित धर्म का लक्ष्य क्या है ?इसकी जरूरत क्या है ?क्या जीवन जीने के लिए यह आवश्यक है ?
अंत में जो धार्मिक है वह भी मरेगा और जो अधार्मिक है वह भी .
हजारों साल से ये सवाल लगातार उठ रहे हैं और 
इन सवालों का जवाब देने के लिए ' मुफ्त में विशेषज्ञ ' मौजूद हैं .फिर भी ये सवाल हिमालय की तरह सर उठाए आज भी खड़े हैं क्यों ?
हमें बचपन से सिखाया जाता है .ये करो ' भगवान ' 
खुश हो जायेंगे ,ये मत करो ' भगवान ' नाराज हो जायेंगे .आखिर ये भगवान कौन है .जो ये ' डिक्टेटरशिप ' चला रहा है ?
मित्रों !अब मैं आप को एक राज की बात बताता हूँ .किसी से कहियेगा नहीं ..........
भगवान मेरे घर के बगल में रहता है .सेमी बेरोजगार है .कभी खुश नहीं रहता .उसके घर में रोज़ कलह मची रहती है .बच्चे उसकी बात नहीं 
मानते .कई बार उसकी बीवी उसे पीट देती है .वह रोज धमकी देता है आज कहीं चला जाऊँगा .अब यहाँ नहीं रहूँगा .लेकिन कहीं जाता नहीं .झख मार कर यहीं रहता है .अपने आप पर कुढ़ता है और यही प्रक्रिया चलती रहती है और चलती रहेगी .
अभी मैंने कल चौराहे की रेड लाइट पर भगवान को देखा ,छोटा सा मुश्किल से सात आठ साल का .आँखों में उदासी और पेट में भूख लिए .खुद पढ़ नहीं सकता और अख़बार बेच रहा था .
न जाने कहाँ हैं वे सरकारी ,गैर सरकारी योजनाएँ जो कहती हैं अब कोई अनपढ़ नहीं रहेगा ,कोई भूखा नहीं रहेगा .
मित्रों !आज विश्व को धर्म की नहींआध्यत्मिकता 
की जरूरत है .कण कण में उपस्थित करुणा के रूप उस परमतत्व को अंतर्मन से देखने की जरूरत है .
" कस्तूरी कुण्डल बसै मृग ढूंढे बनमाहि !
ऐसे घट घट " राम " हैं ,दुनिया जानै नाहि !!" 










Comments

Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छा सवाल उठाया है आप ने। ईश्वर अल्लाह गाड के नाम पर इंसान तबाह किये जा रहे हैं।