सबसे महत्वपूर्ण कौन है ?:एक जरूरी सवाल

मित्रों ,आप जानते ही हैं कि किसी भी पदार्थ की रचना आँखों से न दिखने वाले 
'परमाणुओं ' से मिलकर बनी होती है .और 
इन्हे पदार्थ की सबसे छोटी इकाई (यूनिट )
कहा जाता है हालांकि इनका भी विखंडन 
हो सकता है .
इसी प्रकार एक मनुष्य इस समाज की सबसे छोटी इकाई होता है .समाज से देश बनता है .और यह पृथ्वी भी जो सैकड़ो मील प्रति सेकेण्ड की गति से इस विराट अंतरिक्ष में जाने किस दिशा में भागती चली जा रही है -.......कुछ देशों का एक समूह ही तो है जिसमें 
सागर ,महासागर ,नदियां और न जाने क्या क्या शामिल है और पृथ्वी को माता मानते हुए ये मानव इन सब पर अपना अधिकार समझता है .
" यदि एक छोटा शिशु बीमार हो जाए या घर का 
कोई सदस्य शारीरिक या मानसिक व्याधि से ग्रस्त हो जाए तो पूरा परिवार प्रभावित होता है .यदि कई परिवार मानसिक या शारीरिक बीमार हों तो 
पूरा समाज प्रभावित होता है .                        
इसी प्रकार अपने क्रम से एक व्यक्ति से पूरा ब्रह्माण्ड प्रभावित होता है ." 
बड़े बड़े वैज्ञानिक प्रयोग हो रहे हैं ,यह पता लगाने के लिए कि इस विराट ब्रह्माण्ड का क्या रहस्य है .बहुत पैसा भी खर्च हो रहा है ' हिंग्स बोसान ' जैसे कणों की खोज में .अगर पता भी चल जाए कि ' वह ' कौन सी 
शक्ति है जिससे ब्रह्माण्ड संचालित हो रहा है .तो इससे क्या हासिल होगा ?
कहते हैं ब्रह्माण्ड लगातार फैल रहा है .कुछ ग्रह नछत्र 
ऐसे हैं जिनको मरे हजारों साल बीत गए लेकिन उनका प्रकाश अब धरती पर पहुँच रहा है .कुल मिला 
कर ये ब्रह्माण्ड अनादि अनंत है अर्थात इसका न कोई प्रारम्भ है और न ही अंत .दिमाग घूम जाता है ये सब 
सोच कर .
सारे गृह नछत्र ,सितारे अपने निश्चित पथ पर ,एक दूसरे के गुरुत्व आकर्षण में बंधे अनुशासित चल रहे हैं .कैसे ? जरूर कुछ ऐसा है जिसे जान पाना अभी बाकी है .अपनी अपनी बुद्धि से सभी इसका विश्लेषण करते हैं ,लेकिन निश्चित रूप से कोई नहीं बता पाता .इसी सुव्यवस्थित ब्रह्माण्ड के किसी हिस्से में जब कोई छुद्र ग्रह (छुद्र शब्द पर ध्यान दें ) आवारा -गर्दी करता हुआ घुस आता है तो किसी न किसी से टकरा ही जाता है और विनाश का कारण बनता है .कहते हैं इस पृथ्वी से ये छुद्र ग्रह कई बार टकराए तो कभी पृथ्वी का वातावरण बदल गया ,कभी ध्रुवों की स्थिति बदल गई और कभी डायनासोर जैसे विशाल प्राणी का अंत हो गया .
इस अनादि अनंत ब्रह्माण्ड की अनगिनत परतों में सृजन और विनाश का यह क्रम लगातार जारी है .
क्योकि कोई छुद्र ग्रह आवारागर्दी करता हुआ आता है और किसी न किसी से टकरा जाता है .खुद तो तबाह होता ही है किसी और को भी नुकसान पहुँचा जाता है और तब वह रहस्यमय शक्ति जिसकी हम चर्चा कर रहे थे इस नुकसान की भरपाई करती है अर्थात सृजन करती है .
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मैं यहाँ आपको अंतरिक्ष विज्ञान की अवधारणा बताने की कोशिश बिलकुल भी नहीं कर रहा और न ही मैं स्वयं को इस योग्य समझता हूँ कि उसका विश्लेषण करूँ .मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि ......
इस पृथ्वी के तमाम देश अपने अपने अहंकार की पूर्ति में लगे हैं .देश और समाज भी येन केन प्रकारेण अपना अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं .कोई आत्मसम्मान के नाम पर तो कोई अपने अहम् के लिए अपने ही लोगों का जीवन दांव पर लगा रहे हैं लेकिन वास्तव मैं प्रभावित कौन है ?.............
समाज देश और विश्व ही नहीं इस ब्रह्माण्ड की संभवतः सबसे छोटी इकाई एक छोटा बच्चा एक साधारण मनुष्य ...अरे !पेड़ पौधे और जीवजंतु और पर्यावरण को तो हम भूल ही गए ...

एक छुद्र ग्रह की तरह एक छुद्र मानसिकता से ग्रस्त कोई व्यक्ति या देश बिना किसी उद्देश्य के 
आवारागर्दी करता जानबूझ कर या अनजाने में किसी व्यक्ति या किसी देश से टकराता है तो अपना तो विनाश करता ही है ,दूसरों को भी प्रभावित करता है .
ऐसा आज दिख भी रहा है .फिर भी हम ये नहीं सोचते कि ................
यूनिट या इकाई तो हम ही हैं ,हम से ही समाज है ,
हम से ही ब्रह्माण्ड है .हमारी छोटी छोटी गतिविधियों से परिवार ,समाज और देश ही नहीं पूरा ब्रह्माण्ड प्रभावित होता हैं और स्वयं तो सबसे ज्यादा .चाहे हमारी गतिविधि शुभ हो या अशुभ .
तो मित्रों !!!सकारात्मक सोचेंगे तो ब्रह्माण्ड सकारात्मक होगा और हमारी सहायता भी करेगा वो सब पाने में जो हम जाने अनजाने सोचते हैं .और यदि नकारात्मक तो .......आप खुद समझ लें .
वयस्त रहे ,स्वस्थ रहें और खुश रहे क्योंकि आप इस ब्रह्माण्ड की सबसे महत्वपूर्ण इकाई या यूनिट जो हैं
क्योकि आप रहस्य जान गए हैं .




Comments

Anil. K. Singh said…
बिचार करने की जरूरत है। सामयिक भी है।
Anil. K. Singh said…
बिचार करने की जरूरत है। सामयिक भी है।