लगभग रोज़ की कहानी

मित्रों , रात में कई बातें मन में उथल पुथल मचाये थीं . जुखाम और खांसी भी एक कारण था , सो मैं देर तक जागता रहा और सुबह सवा छः बजे आँख खुली . मैंने सोचा , आज मैं घूमने जरूर जाऊँगा . यद्यपि विलम्ब हो चुका था .
मैं अपनी चिरपरिचित स्थानों पर गया लेकिन जब तबियत ही ढीली हो तो कही भी मन नहीं लगता . आठ बजे लौट कर आया तो बच्चे स्कूल जा चुके थे . पत्नी कल से ही मुँह फुलाये बैठी थी . और मुझे जलीकटी सुनाने का कोई भी मौका चूक नहीं रही थी . मुझे उसके इस व्यवहार का कारण समझ में आ रहा था . मेरे कुछ भी पूछने या कहने पर काट खाने दौड़ती थी .
अब इसका कारण तो मैं ही था , लेकिन गलती इतनी बड़ी भी नहीं थी कि जो मुँह में आए बकते जाओ . धीरे धीरे शादी के इतने सालों बाद मेरी पत्नी  'चंद्रमुखी' से ' सूर्यमुखी ' बन गई है और अब        'ज्वालामुखी ' बनना चाहती है .
उसकी तमाम जलीकटी न कहने योग्य बातें सुनने के बाद भी मैँ उसे बहुत प्रेम करता हूँ . क्योकि -
* प्रेम भरे मधुर वचन मैंने सुने हैं तो कड़ुए वचन कौन सुनेगा ?
*सुख उसके साथ मैंने पाया है . तो दुःख कौन पायेगा
.....
अंत में - गाड़ी है तो ख़राब होगी . अगर कुछ है तो ही कुछ होगा . नहीं है तो कुछ नहीं होगा .
इतनी बड़ी बड़ी बातें सोचना , अलग बात है . मैं कोई उपदेशक नहीं हूँ . एक आम आदमी हूँ और आम आदमी को गुस्सा आता है . अबकी बार अगर बीवी ने कुछ भी उल्टा पुल्टा बोला तो ------==--- . अब मैं क्या बोलू ? बर्दाश्त की भी हद होती है भाई .
लेकिन प्यार की कोई हद नहीं होती . प्यार में तो बर्दाश्त करना ही पड़ता है .





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