और मैं हर परिस्थिति में खुश रहना सीख गया उर्फ़ सम्मान का मुद्दा

मित्रों , कई दिनों से मैं गृहकलह से जूझ रहा हूँ , मैं इस जंजाल से जितना निकलने की कोशिश करता हूँ ,उतना ही उलझता जाता हूँ .
इसका सबसे बड़ा कारण है मेरा आर्थिक मोर्चे पर असफल हो जाना . मेरी एक बात जो मैंने बड़ी गहराई से अनुभव की है वह ये है कि जीवन में आप कितने भी अच्छे काम करते हो ! चाहे जितने सद्गुणी हो यदि आप की जेब खाली हो तो कही भी आपको सम्मान नहीं मिलेगा .
सम्मान के इसी मुद्दे पर मैं अपने जीवन की एक सत्य घटना आपको बताता हूँ . बात उन दिनों से शुरू करता हूँ जब मैं ग्यारह वर्ष का था . ..और एक बड़े शहर में रहता था . उन दिनों मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार अपनी पढ़ाई पूरी करके जॉब की तलाश में हमारे घर आए और कूछ ही समय में उनको जॉब मिल भी गई . बताता चलूँ कि मेरा और उनका सम्बन्ध तब से था जब मेरी उम्र केवल पाँच साल थी . हमारे बीच प्रगाढ़ स्नेह था . अपने खाली समय में वे मुझे पढ़ा भी देते थे .
समय के साथ उन्हे सरकारी नौकरी भी मिल गई और वे चले गए . हमारे और उनके बीच अच्छी समझ थी और मैं उनसे अपनी हर प्रकार की बात चाहे वह व्यक्तिगत ही क्यों न हो साझा कर ही लिया करता था , वे भी ऐसा करते थे . मुझे एक बात बहुत देर से समझ आई कि मैं तो ऐसा इसलिए करता था कि मैं उन से प्रेम करता था और उन पर अत्यधिक विश्वास करता था लेकिन वे ऐसा इसलिए करते थे ताकि वक़्त पर कह सके कि मैंने बताया तो था फिर भी तुम .....
समय बीतता गया और एक बार मैं उनसे मिलने गया और जिन्दगी में पहली बार मेरा ' शराब ' से परिचय हुआ . बहुत मजा आया . तब से मैं जब भी उनसे उनके घर पर मिलता ' महफ़िल ' अक्सर जम जाती . मैं भगवान को धन्यवाद देता हूँ कि इतना सब होते हुए भी मैं कभी इसका एडिक्ट नहीं हुआ और न ही कभी किसी और के साथ ' महफ़िल ' जमाई .
उनके हर पारिवारिक कार्यक्रम में , मैं सबसे पहले पहुँचता था और सबसे बाद में आता था . मैं उनका इतना आदर करता था कि मैंने उनकी कोई बात कभी टाली नहीं , उनके किसी काम आने में मुझे बहुत ख़ुशी होती थी . जीवन में कई बार ऐसे मौके आए जब हमने एक दूसरे की मदद की . मुझे ये बात झटका खाने के बाद समझ आई कि वे तो बेहद डिप्लोमेटिक थे . आभास तो पहले से था लेकिन मेरी आँखो पर विश्वास की पट्टी बंधी थी .
एक बार मेरे साथ एक भयानक घटना घटी . मेरी जॉब छूट गई थी और जो काम मैंने शुरू किया था उसमें घाटा हो गया था और मेरी पूँजी डूब गई थी . इस से मैं गंभीर आर्थिक संकट में फँस गया . और मैं गहरे अवसाद में चला गया .घर के खर्चों में कटौती हुई तो गृहकलह शुरू हुई . इस परिस्थिति का जिम्मेदार मुझे ठहराया जाने लगा . अवसाद की चरम परिणित में ...... मैं आत्महत्या करने घर से निकला . नदी के पुल पर पहुँचा लेकिन अपनों की याद आ गई और हिम्मत जवाब दे गई . मंदिर में जा कर बैठा वहाँ भी चैन नहीं मिला .
मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था .अंततः मैँ ' शराब की दुकान ' पर पहुँचा और आधा बोतल अंग्रेजी खरीद कर अपने परम प्रिय रिश्तेदार के घर पहुँचा . वे घर पर नहीं थे . मेरा वहाँ अक्सर जाना आना लगा रहता था . मुझे उनके परिवार का अभिन्न हिस्सा माना जाता था . मैं चुपचाप उनके विशाल घर के एक कमरे में जा कर बैठ गया . सबसे बताया परेशान हूँ और मुझे डिस्टर्ब न किया जाय . समझदार लोग थे , मान गए .
दारू पीने के बाद मैं लगभग बेहोश हो कर सो गया . सुबह उठने पर पता चला कि नशे में मुझसे एक गलती हो गई थी कि अनजाने मैंने उनका कमोड का ढक्कन तोड़ दिया था .वो कोई गरीब आदमी नहीं थे . मेरे करीबी थे . मेरे साथ बैठ कर शराब पीते थे . अपनी नशे में की गई हरकतों को चटखारे ले कर मुझे सुनाया करते थे . कमोड का ढक्कन टूटना कोई बड़ा नुकसान नहीं था . लेकिन मेरे बेहद करीबी वे साहब ये नुकसान बर्दास्त न कर सके . उन्होंने एक खास मौके पर मेरी गैरमौजीदगी में मेरी बीवी और बच्चों से मेरे प्रति ऐसे ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जिन्हे लिखना ठीक नहीं होगा . बीवी को इस बात का पता नहीं था कि मैं उस दिन किस मन:स्थिति में घर से निकला था . घर लौट कर उसने मेरा जो हाल किया उसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है .
मैं जैसे आसमान से गिरा . मुझे ये उम्मीद नहीं थी . फिर भी मेरा उनसे प्रेम कम नहीं हुआ .यद्यपि उनके मेरे प्रति व्यवहार में स्पष्ट परिवर्तन दिख रहा था . अभी और लतियाया जाना बाकी जो था . कुछ दिनों के बाद उन्होंने मुझसे कहीं बाहर पर्यटन पर चलने का ऑफर दिया . मैंने भी हाँ कर दी . मैंने कहा मेरा एटीएम कार्ड ख़राब हो गया है , बैंक दो दिन के लिए बंद है .पैसे कम पड़ेगे . उन्होंने 4000 रूपये दिए . मैं लौट कर आया . पैसे निकाले लेकिन जिस दिन का वादा किया , उस दिन पहुँचाना भूल गया . शाम को उनका फोन आया और फ़ोन पर ही मैंने इतना कुछ सुना जिसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी .
बड़े सुबह उनके पैसे लेकर मैं उनके घर गया . उनके सामने उनकी पत्नी को गिन कर पैसे दिए . बैठा भी नहीं . चाय भी नहीं पी . और बिना कुछ बोले अपने प्रेम बंधन से उन्हें आजाद कर भारी मन से घर वापस लौट आया . फिर मैंने डिप्रेशन पर रिसर्च की . गुरु के कहे अनुसार ध्यान , धारणा और प्राणायाम का अभ्यास किया और फिर कभी नशे की जरूरत महसूस नहीं की . इस प्रकार मेरे बचपन का प्रेम एक झटके में समाप्त हो गया .
आज फिर वही परिस्थित है . मेरा बिजनेस एक बार फिर घाटे में चला गया है . पूँजी एक बार फिर डूब गई है . पारिवारिक झगडे फिर शुरू हो चुके हैं . लेकिन मैं आत्महत्या करने नहीं जाऊँगा . शराब नहीं पीऊंगा . किसी के कमोड का ढक्कन तो हरगिज नहीं तोडूंगा .
क्योकि मैं हर परिस्थिति में खुश रहना सीख गया हूँ .



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