एक रहस्य : जिसके विषय में सोचा न था

मित्रों , एक बार मैं एक 'स्वामी जी ' का प्रवचन पढ़ रहा था . उन्होंने लिखा - बारह वर्ष तक विभिन्न कष्टसाध्य साधनायें करने के बाद मुझे मतलब की बात हाथ लगी कि सारे पूजा पाठ ,जप तप और त्याग तपस्या का मतलब क्या है ? उन्होंने कहा यदि आप अंदर बाहर से चुप हो जायें तो यही नहीं सारे ब्रम्हांड का रहस्य अपने आप खुल जायेगा और जिंदगी के हर सवाल का जवाब हासिल हो जायेगा .
मित्रों , बाहर से चुप हो जाना सरल है .एक आध घंटा कोई भी चुप हो सकता है लेकिन मन में विचारों की आंधी चल रही हो तो यह चुप्पी खतरनाक हो सकती है लेकिन एक आध घंटे की चुप्पी से कोई खतरा नहीं
बड़ा सवाल - अंदर से चुप कैसे रहा जाए ? एक उदहारण है कि आप सड़क के किनारे बैठे हैं . तमाम गाड़ियां आ जा रही हैं . हमारा उनसे मतलब नहीं तो हम उन पर ध्यान भी नहीं देते अर्थात हम उस समय अपने सामने घट रही घटना के केवल गवाह होते हैं , भागीदार नहीं .. लेकिन अगर किसी गाड़ी में कोई परिचित दिख जाय या हमारी पसंद की कोई गाड़ी दिख जाय तो हमारा मतलब निकल आता है .फिर आगे की प्रक्रिया में जो भी अच्छा या बुरा होता है हम उसके  केवल गवाह ही नहीं भागीदार भी बन जाते हैं
ठीक यही स्थिति मन की भी है मन में अनेक विचार आते जाते रहते हैं .जिस प्रबल विचार से हम आकर्षित हो जाते हैं मन में उसी प्रकार के विचारों की फौज खड़ी हो जाती है .और हम उन्ही फ़ौजी विचारों के अनुरूप कर्म करने के लिए बाध्य हो जाते हैं . फिर उन कर्मों का जो भी अच्छा बुरा परिणाम होता है हमें भुगतना पड़ता है .
तो भीतर से चुप होने के लिए हर प्रकार के अच्छे बुरे विचारों से रहित होना पड़ेगा .कैसे ? अपनी सुविधा अनुसार कोई शांत स्थान खोज ले और वहां सुखपूर्वक बैठ कर बिलकुल चुप और शांत हो जांय .विचारों को आना है और वे आएंगे , मन में सोच लें मैं इन विचारों के साथ नहीं जाऊँगा .मन का स्वभाव है बिना आपको साथ लिए वो कहीं नहीं जाएगा .विचार आएंगे विचार जायेंगे .आप एक गवाह की तरह इन आते जाते विचारों को देखते रहिए जैसे सड़क पर आती जाती गाड़ियों को देखते हैं .प्रारम्भ में यह स्थिति केवल एक दो मिनट तक रहती है फिर मन आपका अपहरण कर अपने साथ ले जाने में कामयाब हो जाता है और आपको पता भी नहीं चलता . पता तब चलता है जब मन घूम फिर कर वापस आता है .आप भगवान को या जिसे भी मानते हो या किसी को न मानते हों तो स्वयं को धन्यवाद दीजिए कि आखिर वापस आ गए .
पुनः अभ्यास शुरू करें . यदि प्रतिदिन केवल पंद्रह मिनट यह प्रक्रिया की जाय तो इक्कीस दिनों के अंदर परिणाम दिखने लगते हैं ,आपको ही नहीं दूसरों को भी . आप के अपने विश्वास , मनःस्थिति और जीवनशैली के अनुसार यह अवधि घट बढ़ भी सकती है .साधारणतया इक्कीस दिनों में आपके शरीर की सारी कोशिकाएं परिवर्तित हो जाती हैं .
आपको अपने समस्त प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही मिल जायेगा .ऐसे ऐसे आशार्यजनक परिणाम दिखाई देंगे जिसके विषय में आपने शायद कल्पना भी न की हो .
यही है रहस्य बाहर भीतर से चुप होने का .

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