दूध का डिब्बा , बंद घड़ी और एक भड़की हुई भैस की कहानी

आज सुबह पाँच बजे मैं दूध का डिब्बा लटकाये घूमने निकला . डिब्बा डेयरी पर रख मैं आगे निकलने वाला था ,ताकि लौट कर मैं दूध ले लूं . रास्ते में पड़ने वाले नीम के पेड़ से दातून तोड़ , उसे मुँह में दबाए मैं तेज कदमो से आगे चला . गाँव के स्कूल के हैंडपंप पर पहुँच मैं दातून फेंक हाथ मुँह धो ही रहा था कि दूध के डिब्बे की याद आई . मुझे ये तो याद था कि डिब्बा मैंने डेयरी पर नहीं रखा . तो फिर डिब्बा गया कहाँ ?
मैंने पत्नी को फोन किया . उसने रिसीव ही नहीं किया . मैं डिब्बा डिब्बा सोचता वापस लौटा . तालाब के पास पहुँचा तो बीवी का फ़ोन आया . मैंने डिब्बे के बारे में बताया . मजे की बात ये कि मुझे उस समय ये याद ही नहीं था कि मैं घर से डिब्बा लेकर चला भी था या नहीं . लौट कर डेयरी में झाँका ,डिब्बा वहाँ नहीं था . खैर डिब्बे के लिए घर लौटा , रास्ते में नीम के पेड़ के नीचे डिब्बा पड़ा मिला .
दूध लेकर घर लौटा . छोटे बच्चे स्कूल जा चुके थे और बड़ी बेटी निकलने वाली थी . आज उसके हाथ में घड़ी न देख पूछा ,तो पता चला सेल खत्म हो गया . समय देखने के लिए दीवाल घड़ी पर नजर डाली तो वो भी बंद थी . मैंने मोबाइल पर नज़र डाली , मैंने देखा पौने आठ बजे थे .  बेटी को घर से निकलने में पर्याप्त देरी हो चुकी थी .
आननफानन उसे लेकर मैं स्टॉप पर पहुँचा तो पता लगा पन्द्रह मिनट इंतजार कर उसकी बस जा चुकी थी . मैंने बेटी की तरफ देखा . वह स्पष्ट बोली - मेरी कोई गलती नहीं . मैं स्कूल ब्रेक नहीं कर कर सकती . अब उसे लेकर मैं  मॉर्निंग वॉक की ड्रेस में बीस किलोमीटर दूर उसके स्कूल पहुँचा . फिर वापस बीस किलोमीटर गाडी चला कर घर पहुँचा . ख़ामख़ा मुझे सुबह सुबह चालीस किलोमीटर स्कूटी चलानी पड़ी ,क्यकि " घड़ी का सेल वीक था "
नहा धो कर पूजा पाठ किया और भोजन करके मैं दो बोरा यूरिया खाद लाद कर गन्ने के खेत में पहुँचा . बड़ी मुश्किल से दो मजदूरों को पकड़ा . बरसात के मौसम में दोपहर की तेज़ धूप बहुत " तेज़ " लगती है . काम पूरा कर घर आया तो फिर मुझे चार किलोमीटर बेटी को लेने जाना पड़ा . वापसी में एक स्थान पर सड़क किनारे एक " भैंस " चर रही थी . अचानक वो भड़क गई और कूदते हुए स्कूटर के सामने आ गई . मैंने जोरदार ब्रेक लगाया और सड़क की गिट्टी पर फिसल कर सड़क पर धड़ाम हो गया . अधिक चोट नहीं आई लेकिन घुटना अभी तक दर्द कर रहा है . मैंने भगवान को धन्यवाद दिया और सोचा - अच्छा हुआ स्कूटर मैं चला रहा था मेरी बेटी नहीं जबकि उसने चलाने की ज़िद की थी .

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