श्मशान की यात्रा

मित्रों ,
चलते चलते थक गए. भटकते हुए पता नहीं किस चौराहे पर पहुँच गए . नहीं पता किस ओर जाना चाहिए . किंकर्तव्यविमूढ़ चौराहे पर देर तक बैठे बैठे अपनी अवस्था पर विचार करते हुए न चाहते हुए भी उन चौराहों की याद आने लगी जहाँ पहले बैठ चुके थे .याद आई साइकिल की यात्रा , बैलगाड़ी की यात्रा , दो पहिया ,चार पहिया ,हवाईजहाज की यात्रा और आज की पद यात्रा . निराशा और अवसाद की धुंध छाने लगी है आगे का रास्ता दिखाई नहीं पड़ता . समझ नहीं आता क्या करें ? 
साथ चलने वाले अपने अपने रास्ते चले गए . कुछ का संदेश आता है - मैं मंजिल के करीब हूँ या पहुँच गया हूँ . कुछ कहते हैं -  यात्रा सुखद है .फिर उन्हें और उनकी यात्रा को स्मरण कर मन में एक अजीब सी ' हीनभावना'  घर करने लगती है . कभी खुद को कभी उनको कोसते हैं जिनके कारण मार्ग बदलना पड़ा .
मित्रों , एक बार मैं अपने प्रियजन के साथ पास के शहर किसी काम से गया .जहाँ हमें पहुँचना था उस रास्ते पर कई चौराहे पड़ते थे और एक विशेष चौराहे से हमें मुड़ना था .पता नहीं किस सोच में हम आगे निकल गए और रास्ता भटक कर ऐसी जगह पहुंचे जहां मुर्दे जल रहे थे .
जिंदगी भी ऐसी ही है , हम रास्ता भटक जाते हैं और जब तक चेतना आती है ,अपने आप को और दूसरों को कोसते हुए श्मशान घाट पहुँच जाते है .
तो फिर .........
अरे दूसरों को कोसना बंद करो . स्वयं अपना रास्ता खोजो . मंजिल सामने है . नकारात्मक सोच का चश्मा उतरो और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ो . पैदल हैं तो क्या पैर सलामत हैं . अभी पिछले चौराहे पर एक यात्री को देखा था न , उसके तो पैर भी नहीं थे . ख़ुशी से झूम कर चलो . पूरा ब्रह्माण्ड तुम्हारी मदद को तत्पर है .

Comments

Unknown said…
True based story ...
Unknown said…
Real ,true ,such