हातिमताई बनने की कोशिश

मित्रों , बात उन दिनों की है जब मेरी छोटी बिटिया ,एक बड़े सीजर ऑपरेशन के द्वारा इस दुनिया में आई और आते ही एन .आई .सी .यू . में एडमिट हो गई .सात दिन तक वहाँ रखने और नर्सिंग होम का       मुंहमाँगा भारीभरकम बिल चुकाने के बाद हम उसे लेकर घर आये . एक सप्ताह भी नहीं बीता कि डॉक्टर के रिफर कर देने के कारण गंभीर हालत में अपनी बेटी को लेकर मुझे अपनी सद्यः प्रसूता कमजोर पत्नी के साथ राजधानी स्थित मेडिकल कॉलेज जाना पड़ा , जो हमारे यहाँ से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर है .
भीड़ और अव्यवस्था के बीच बेटी को मेडिकल कॉलेज के एन .आई .सी .यू . में एडमिट कराया गया और इलाज वा टेस्ट का सिलसिला शुरू हुआ .बेटी के साथ हम पति पत्नी में से कोई एक ही कुछ देर के लिए रुक सकता था .चार दिन तक वार्ड के बाहर और कैंसर वार्ड के सामने हम सोए . पत्नी की स्थिति मुझसे देखी नहीं जा रही थी .इसी बीच वहां के कुछ जूनियर डॉक्टरों से कुछ सम्पर्क बढ़ा तो मैंने एक डॉक्टर से कहा कि सर! मेरी पत्नी का सीजेरियन हुआ है और आप लोगों के अनुसार हमें एक महीना यहाँ रहना पड़ेगा .इस कंडीशन में कैसे बीतेगी ?यहाँ बच्चों के माता पिता के लिए कोई  व्यवस्था है ? डॉक्टर मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना बोला कि - किसी फोर्थ क्लास एम्प्लाई से बात करो .उसकी बात सुन मैं हैरान होकर बाहर चला आया . तभी मुझे एक हाँथ में बाल्टी और दूसरे हाँथ से पोंछा घसीटते हुए एक जमादार के दर्शन हुए . उसके पास जाकर मैंने बड़े प्रेम से नमस्कार किया और अपनी बात रखी तो वो बोला - एक चद्दर और पचास रूपए . मैंने फटाफट दोनों चीजें उसके हाँथ पर रख दीं . और पंद्रह मिनट बाद हम एक साफ सुथरे हवादार कमरे में थे और हमारी चद्दर बेड पर बिछी हुई थी .
जैसे तैसे दिन बीत रहे थे और पैसा हवा की तरह उड़ रहा था मैं जब भी मौका मिलता भगवान से सहायता की प्रार्थना करने लगता . तभी एक दिन ............
पत्नी कमरे में थी . बेटी को इंजेक्शन देने का समय हो चूका था . वो इंजेक्शन 900 रूपए का था . सुबह ,दोपहर और शाम को आधा आधा और फिर आधा लगता था .बचा भाग वही फ्रिज में रखा जाता था . उसको लगाने के लिए एक विशेष इन्फ़िउजन सेट का प्रयोग होता था जो डेढ़ सौ का था . मैं वही इंजेक्सन लेने फ्रिज के पास गया .अपना इंजेक्शन जिस पर माँ के नाम का टैग और बेड नंबर लिखा था मैंने उठाया और जैसे ही पीछे घूमा ........!!!
मेरी नजर दीवार पर लगे स्विच बोर्ड के ऊपर लगे एक विजिटिंग कार्ड पर पड़ी जो इस तरह लगाया गया था कि ऊपर का हिस्सा तो टेप से चिपकाया गया था लेकिन नीचे का नहीं . जिज्ञासावस मैंने कार्ड पलटा उसके नीचे लिखा था - inj. xyz -350.यानी ये तो वही इंजेक्शन था जो मेरी बेटी को लग रहा है और अभी एक महीने लगेगा . मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया लेकिन फिर भी मैंने कार्ड पर लिखे नंबर पर फ़ोन किया . फ़ोन उठा और मैंने कहा मुझे ये इंजेक्शन चाहिए . और अपनी जरूरत बताई .मुझसे पेसेन्ट का नाम और बेड नंबर पुछा गया और एक घंटे के अंदर टाई लगाए एक एम . आर . मेरी पत्नी के बेड पर पहुंचा .पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद मैंने मेडिकल कालेज के काउंटर पर नौ सौ रुपये में मिलने वाला वह इंजेक्शन सिर्फ तीन सौ पचास में अपनी जरूरत के हिसाब से खरीद लिया .
मेरी इच्छा हुई कि विपत्ति के मारे इन छोटे बच्चों के माता पिता को मैं चिल्ला चिल्ला कर बता दूँ कि लोगों ये है नौ सौ वाला इंजेक्शन जो साढ़े तीन सौ में मिलता है .लेकिन मैं ऐसा न कर सका .
इसी तरह मुझे कुछ अक्ल आई तो मैं सीधा मेडिकल मार्केट गया और डेढ़ सौ रूपए का वही आई . वी . सेट आधे से भी कम मूल्य पर पूरा डिब्बा ही खरीद लाया .
पंद्रह दिन बीत चुके थे और बेटी की तबियत तेजी से सुधर रही थी .मैं अब थोड़ा निश्चिंत होने लगा था .एक दिन मैंने देखा ........
एक बुजुर्ग व्यक्ति दीवार से सिर टिकाए जार जार रो रहे थे . उन्हें इस तरह रोता देख मुझे बड़ी दया आई .कुछ देर बाद वे आँसू पोंछते हुए पलटे तो मैंने नम्रता से पूछा - क्या हुआ बाबू जी ? वे बोले बहुत दिनों के बाद घर में लड़का पैदा हुआ , हालत बहुत गंभीर है .मैंने कहा - बाबूजी !आप प्रदेश की सबसे बड़ी चाइल्ड केयर यूनिट में हैं और जाने माने विशेषज्ञ इलाज कर रहे हैं .पैसा आप खर्च ही कर रहे हैं फिर नकारात्मक न सोचें जितना आप के बस में है उतना तो आप कर ही रहे हैं फिर ...सकारात्मक सोचें और भगवान पर विश्वास रखें .बच्चा ठीक हो जायेगा .
मेरी ये बात सुन वे बुज़ुर्ग मुझसे बच्चों की तरह लिपट गए और आशीर्वाद और धन्यवाद की झड़ी लगा दी
 .दूसरे दिन शाम को मैं चाय पीने और पत्नी के लिए चाय लाने बाहर निकला .एक ठेले पर चलने वाले    टी स्टाल पर पहुंच मैंने चाय ली और वहीं खड़े खड़े चाय पीने लगा .
तभी मेरी नजर फुटपाथ पर पड़ी . वहां जमीन पर प्लास्टिक की पन्नी बिछाये अपनी पत्नी और शायद बेटे बहू के साथ वही बुजुर्ग बैठे थे .मेरी उनसे नजर मिली तो मैंने सिर झुका कर नमस्ते की .वे लपकते हुए मेरे पास आए तो उनका परिवार उनकी इस हरकत को ध्यान से देखने लगा .मैं सकपकाया सा खड़ा था .उन्होंने मेरी बेटी का हालचाल पूछा . अपनी बताने के पहले मैंने उनके नाती का हाल पूछा . वे बोले - खतरे से बाहर . मुझे पता नहीं क्यों बड़ी ख़ुशी हुई .
मैंने ध्यान से देखा तो उनके व्यवहार ,परिवार और कार को देख मैं समझ गया कि बुजुर्ग संपन्न घर से हैं .मैंने कहा - आप यहाँ फुटपाथ पर ? उन्होंने कहा - क्या करें कोई व्यवस्था नहीं बन पा रही .होटल दूर है .
मैंने कुछ नहीं कहा और चाय पीता रहा . तभी मुझे वही जमादार माफ़ करें सफाई कर्मी आता दिखा . मैंने बुज़ुर्गवार से एक चद्दर और पचास रूपए की व्यवस्था करने को कहा और जब तक वे कुछ समझते मैंने उस सज्जन सफाई कर्मी को बड़े प्रेम और सम्मान से नमस्कार किया .मैंने उससे चाय पीने का आग्रह किया . तो वो बड़ी निष्ठुरता से बोला - काम बोलो . मैंने पचास रुपए और चद्दर उसे दिया . बुजुर्ग का परिचय करा दिया और आधे घंटे में कमरा मिल गया .       
बाबू जी खुश होकर रात में मेरे और पत्नी के लिए ऐसा शानदार डिनर ले कर आए कि मैंने देखते ही मना कर दिया .वे रुआंसे हो कर बोले - ब्राह्मण हूँ बेटा ! बड़े प्यार से लाया हूँ . खा लो . फिर मैं क्या करता - खा लिया .
दो दिन बाद वही फोर्थ ग्रेड इम्प्लॉई उर्फ़ सफाई कर्मी मुझे फिर दिखा और मैने फिर बड़े सम्मान के साथ उसे नमस्कार किया .उसने मुझे बड़े ध्यान से देखा और बोला ----------.
" साहब ! हातिमताई बनने की कोशिश मत करो .तुम्हारी वजह से मेरा कम से कम दो सौ का नुकसान हो गया .तुमको पचास में मिला तो क्या सबसे वही दिलवाओगे ? बड़ी पार्टी थी चाहता तो पाँच सौ मिल जाते " .........!!!!!



Comments

Anil. K. Singh said…
hatimtai aap hai no dout