एक विशेष सुख दुःख चर्चा

मित्रों , प्रातः भ्रमण के समय रास्ते में मेरे एक पुराने मित्र मिले .हाथ में लाठी लिए , अपने खेतों का भ्रमण कर लौटे थे . काफी समय बाद मिले थे , हाथ पकड़ कर वही बैठ गए और हमारी सुख दुःख चर्चा शुरू हुई
इसी चर्चा के दौरान अनुभव हुआ कि ऊपर से प्रसन्न दिखने वाले मेरे मित्र अपने अंदर कितना दुःख छिपाए बैठे हैं . हमेशा हॅसते रहते हैं . हालचाल पूछने पर हॅसते हुए कहेंगे - सब ठीक है ,भगवान की कृपा है .
जबकि मैं अच्छी तरह जानता हूँ उनकी तकलीफों को
मैं उनकी तकलीफों के विस्तार में , उनकी अनुमति के बिना कैसे जा सकता हूँ ? एक परेशान आदमी कैसे अपनी परेशानी छुपाने की कोशिश करता है फिर भी छुपा नहीं पाता . ये मैंने आज देखा .
अब तस्वीर का दूसरा पहलू देखिये . एक दिन मैं अपने एक प्रियजन से मिलने उनके घर गया . घर क्या उसे शहर में बनी दो मंजिला हवेली कह सकते हैं . घर के बाहर उनकी विशाल कार खड़ी थी . अंदर पूरा घर वातानुकूलित था . हर तरफ समृद्धि बिखरी पड़ी थी .मैं अंदर गया तो उनकी पत्नी से मुलाकात हुई . मैंने पूछा - मुझे बुलाकर कहाँ चले गये साहब ? वे दुःखी स्वर में बोली - कल से गले में खराश है . शायद दवा लेने गए हैं . मैंने सोचा गले की खराश अगर कल से है तो इसमें इतना दुःखी होने की क्या बात है . बाद में उनके बच्चों से पता चला कि उनके मनपसंद टीवी सीरियल की हीरोइन की शादी इसके बजाय उसके साथ हो गई . एक काल्पनिक नाटक में अपने मन का न हुआ तो इतना दुःख ?कोई परेशानी नहीं फिर भी परेशान हैं . किसी रोग से ग्रस्त न होते हुए भी डॉक्टर के पास जाते , मैंने उनको देखा है .
अब इन दोनों से अलग मेरे एक अन्य परिचित . चार बार नौकरी छोड़ चुके . बहुत पढ़े लिखे लेकिन मस्तमौला, मन किया तो किसी आश्रम में एक एक महीने रोगियों की सेवा करेंगे . मंदिर जा कर बाहर पड़े जूतों को कपडे से साफ कर करीने से लगायेंगे .
बात करेंगे तो ऐसा लगेगा मुँह से फूल झड़ रहे हों .कभी अंग्रेजी दवा नहीं खाते . पता नहीं उनका खर्च कैसे चलता है ? लेकिन हमेशा खुश दिखते हैं .
अब तो आप जान ही गए होंगे कि खुशी मन का विषय है , किसी परिस्थिति का नहीं . यदि हम खुश रहने की ठान लें तो हमें कोई दुःखी नहीं कर सकता और यदि दुःखी रहना चाहें तो कोई खुश भी नहीं कर सकता .


Comments

Anil. K. Singh said…
Very good Pasand aaya